क्या अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करना जरूरी है? : मोहन भागवत

सारांश
Key Takeaways
- समस्याओं की चर्चा से ज्यादा उपायों पर ध्यान देना चाहिए।
- दुख आज भी मानवता की पहली समस्या है।
- विज्ञान ने सुख-सुविधाएं दी हैं, लेकिन दुख में कमी नहीं आई।
- अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष जरूरी है।
- प्रकृति का नियम बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाना है।
नई दिल्ली, 22 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास द्वारा मंगलवार को अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में 'विश्व की समस्याएं और भारतीयता' विषय पर 10वें अणुव्रत न्यास निधि व्याख्यान का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कार्यक्रम में कहा कि समस्याओं पर अधिक चर्चा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि समस्या की चर्चा से तनाव बढ़ता है; इसके बजाय हमें उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा कि विश्व समस्याओं में घिरा हुआ है। अगर हम पुस्तकों में देखेंगे तो चीन और जापान का उल्लेख मिलेगा, लेकिन भारत का नहीं। यह स्पष्ट है कि समस्याओं की सूची 2000 वर्ष पुरानी है। पहली समस्या दुख है। मनुष्य दुखी है, और इसके समाधान भी खोजे गए हैं। सुख की खोज हमेशा से रही है। 100 वर्ष पहले बोलने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, जबकि आज सूचना तेजी से फैलती है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान के आगमन से सुख-सुविधाएं बढ़ीं, लेकिन दुख अभी भी विद्यमान है। हर व्यक्ति दुखी है। 1950 में मेरा जन्म हुआ। तब से आज तक ऐसा कोई वर्ष नहीं गया, जब दुनिया में युद्ध न हुआ हो। प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति के लिए पुस्तकें लिखी गईं, लेकिन क्या आज हम सोच रहे हैं कि तीसरा विश्व युद्ध होगा? शांति के प्रयास किए गए, लेकिन क्या शांति प्राप्त हुई?
मोहन भागवत ने कहा कि मानवता के पास बड़ी क्षमता है। अगर हम देखें तो कोशिकाओं में क्रोमोसोम का अध्ययन किया गया है। मनुष्य ने प्रगति की है, लेकिन अज्ञानता भी बढ़ी है। पहले आयुर्वेद जैसे पारंपरिक ज्ञान का महत्व था। अब लोग लौकी का जूस पीने की सलाह लेने लगे हैं।
उन्होंने कहा कि शोषण और गरीबी बढ़ गई है। अमीर और गरीब के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है। पहले राजा आए, जिन्होंने कुछ ठीक किया, लेकिन फिर वह भी जुल्मी बन गए। धर्म का अंकुश भी कमजोर हुआ। विज्ञान ने अपनी जगह बनाई, लेकिन समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं।
उन्होंने कहा कि पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच संघर्ष चल रहा है। सुखदुख कम नहीं हुआ। आज हम अपने घरों में सुरक्षित नहीं हैं। पुलिस के होते हुए भी हम असुरक्षित महसूस करते हैं। समस्याएं बढ़ रही हैं, लेकिन उनके समाधान की आवश्यकता है। हमें उपाय करने की आवश्यकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि प्रतिस्पर्धा है। प्रकृति का नियम है कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। यही जीवन का उद्देश्य है। आज विश्व में प्राचीन परंपराओं के लोग हैं, लेकिन उन्हें कोई नहीं सुनता। वे चार साल में एक बार भारत आते हैं। पहले प्रेम था, लेकिन आज भौतिकता का बोलबाला है।