क्या मनमोहन सिंह की चुप्पी ने उनकी पहचान को गहरा किया?
सारांश
Key Takeaways
- मनमोहन सिंह का जन्म: २५ सितंबर १९३२
- कार्यकाल: १० वर्षों तक प्रधानमंत्री
- भाषणों की संख्या: लगभग ११९८
- राजनीतिक छवि: 'कमजोर' के रूप में स्थापित
- चुप्पी का महत्व: एक महत्वपूर्ण राजनीतिक रणनीति
नई दिल्ली, २५ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ‘हजारों उत्तरों से बेहतर है मेरी चुप्पी, न जाने कितने प्रश्नों की इज्जत रखी।’ देश के सर्वोच्च पद पर रहे मनमोहन सिंह के ये शब्द उन अनगिनत सवालों का जवाब थे, जो उस समय विपक्ष में बैठी भाजपा और अन्य राजनीतिक दल उनकी चुप्पी पर उठाते थे।
२५ सितंबर १९३२ को अविभाजित भारत के पंजाब में मनमोहन सिंह का जन्म हुआ। देश के वित्त मंत्री बनने से पहले उनका राजनीति से कोई खास संबंध नहीं था। परिस्थितियों ने ही उन्हें पहले वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री बना दिया। वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। वे राज्यसभा के माध्यम से चुनकर आते रहे और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर देश का संचालन किया। अपने १० साल के प्रधानमंत्री कार्यकाल में, मनमोहन सिंह ने बहुत कुछ देखा। उन्होंने देश को विकास की दिशा में आगे बढ़ते देखा और अपनी ही सरकार को भ्रष्टाचार के अंधकार में डूबते हुए भी देखा।
इस दौरान, सरल स्वभाव वाले मनमोहन सिंह के मन में विरोधियों के लिए जवाबों का सागर उबलता रहा, लोग उन्हें बोलने के लिए उकसाते रहे और उनकी चुप्पी पर सवाल उठाते रहे। उसी समय विपक्ष ने उनकी एक ‘कमजोर’ प्रधानमंत्री की छवि बना दी थी, जिसे विरोधियों ने उनके नाम से कभी हटने नहीं दिया।
एक भाषण में लालकृष्ण आडवानी ने कहा था, “मैंने ऐसा कमजोर प्रधानमंत्री पहले कभी नहीं देखा। जब भी मैंने उन्हें कमजोर कहा है, मेरे मन में एक ही भावना रही है। वह भावना रही कि भारत में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण होता है प्रधानमंत्री निवास, लेकिन ७ रेस कोर्स रोड (जो अब ७ लोक कल्याण मार्ग है) का कोई महत्व नहीं रह गया।”
ऐसे ही हालात बने कि पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय को यह बताना पड़ा कि पीएम रहते हुए मनमोहन सिंह ने कितनी बार चुप्पी तोड़ी। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी ने उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि हर १० साल में लगभग हर तीसरे दिन प्रधानमंत्री ने भाषण दिया। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग ११९८ बार भाषण दिए।
यह भी सच था कि विरोधियों का आरोप था कि मनमोहन सिंह ‘रिमोट कंट्रोल पीएम’ हैं, लेकिन अपनी बेदाग छवि के सहारे उन्होंने राजनीतिक सफर जारी रखा। २७ अगस्त २०१२ को संसद परिसर में मनमोहन सिंह ने वही शब्द पढ़े, ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।’
मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति की एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने बहुत कम बोला। उनकी चुप्पी ही उनकी पहचान बन गई। अपने जीवन में इसी तरह की खामोश कहानी लिखने वाले मनमोहन सिंह ने २६ दिसंबर २०२४ को इस दुनिया को अलविदा कहा।