क्या महायुति सरकार मराठी भाषा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है? : आनंद परांजपे

सारांश
Key Takeaways
- महायुति सरकार ने मराठी भाषा की रक्षा की प्रतिबद्धता जताई है।
- कक्षा पहली से पांचवीं तक मराठी अनिवार्य किया गया है।
- त्रिभाषा नीति में हिंदी और अन्य भाषाओं का विकल्प है।
- अबू आजमी के विवादित बयान की आलोचना की गई है।
- भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि मजबूत है।
मुंबई, 23 जून (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व सांसद आनंद परांजपे ने महायुति सरकार की मराठी भाषा और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने सोमवार को यह स्पष्ट किया कि महायुति सरकार किसी भी निर्णय से मराठी भाषा को नुकसान नहीं पहुँचाएगी।
तीन भाषा नीति पर आनंद परांजपे ने बताया कि मराठी इस राज्य की मुख्य भाषा है और सरकार ऐसे कोई निर्णय नहीं लेगी जो इसे क्षति पहुंचाए। उन्होंने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, तीसरी भाषा में हिंदी का विकल्प भी शामिल है, इसलिए महायुति सरकार मराठी के अस्तित्व को खतरे में नहीं डाल रही है।
परांजपे ने कक्षा पहली से पांचवीं तक के स्कूलों में मराठी को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने के लिए सरकार की योजनाओं का जिक्र किया। इसके अनुसार, जीआर का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट है कि मराठी को अनिवार्य किया गया है। यह आरोप कि मराठी को समाप्त किया जा रहा है, निराधार हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत त्रिभाषा नीति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को शामिल किया गया है। यदि किसी स्कूल में 20 या उससे अधिक छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा जैसे संस्कृत, तेलुगु, तमिल आदि सीखना चाहते हैं, तो स्कूल को शिक्षकों की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई है। महायुति सरकार मराठी को खतरे में डालने का कार्य नहीं कर रही। इस विषय पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार रात को एक विशेष बैठक भी बुलाई थी।
आनंद परांजपे ने समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के हालिया बयानों की निंदा की। उन्होंने कहा कि आजमी हमेशा से हिंदू-मुस्लिम तुष्टिकरण करते आए हैं। महाराष्ट्र की शांतिपूर्ण परंपरा को बिगाड़ने के लिए ऐसे विवादित बयान देना उनकी आदत बन गई है। उन्होंने पंढरपुर वारी की 800 साल की परंपरा का उल्लेख किया जो संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम से जुड़ी है। इस यात्रा में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं, जिसमें मुस्लिम समुदाय भी सेवा कार्य करता है।
उन्होंने कहा कि आजमी के विवादित बयान महाराष्ट्र की शांतिपूर्ण परंपरा को खराब करने की कोशिश हैं। वे सरकार से मांग करते हैं कि उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
आनंद परांजपे ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ती साख का उल्लेख करते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंधु का उदाहरण लेते हुए भारत सरकार ने इजरायल में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने के लिए त्वरित कार्रवाई की। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के प्रयासों की सराहना की। ईरान के राष्ट्रपति का मोदी से 35 मिनट तक फोन पर बात करना यह दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत और हमारे प्रधानमंत्री की छवि कितनी मजबूत है।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी द्वारा ईरान को समर्थन देने संबंधी पत्र पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री मोदी विचार-विमर्श के बाद लेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध जल्द खत्म हो, इसके लिए भारत की ओर से शांति की पहल जारी रहेगी।
परांजपे ने पाकिस्तानी कलाकारों को भारतीय फिल्मों में सम्मिलित करने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों के बावजूद कुछ भारतीय निर्माता पाकिस्तानी कलाकारों को अपनी फिल्मों में लेते हैं, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे कलाकारों की फिल्में भारत में प्रदर्शित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि देश सर्वोपरि है।