क्या जगन्नाथ मिश्र ने बिहार की राजनीति को नया आयाम दिया?

सारांश
Key Takeaways
- नेतृत्व: जगन्नाथ मिश्र का नेतृत्व शिक्षा और सामाजिक सुधारों में महत्वपूर्ण था।
- राजनीतिक विवाद: चारा घोटाला उनके जीवन का एक विवादास्पद हिस्सा था।
- संस्कृति: उन्होंने मैथिल संस्कृति को बढ़ावा दिया और उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया।
- जनता से जुड़ाव: उनकी सादगी और सहजता उन्हें जनता का प्रिय बना दी।
- सामाजिक मुद्दे: उन्होंने अपने समय के सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता दी।
नई दिल्ली, 24 जून (राष्ट्र प्रेस)। पंडित जगन्नाथ मिश्र बिहार की राजनीति में एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से इतिहास के पन्नों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके जगन्नाथ मिश्र का जीवन उपलब्धियों, विवादों और सियासी उतार-चढ़ाव की एक अद्भुत कहानी है, जो आज भी लोगों के दिलों में ताजा है।
सुपौल के बलुआ बाजार में 24 जून 1937 को जन्मे जगन्नाथ मिश्र ने न केवल बिहार की सियासत को दिशा दी, बल्कि अपने समय के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को भी उजागर किया। यह कहानी सिर्फ सत्ता की नहीं, बल्कि संघर्ष, सेवा और विवादों की भी है।
जगन्नाथ मिश्र ने अपने करियर की शुरुआत बिहार विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में की। बचपन से ही उनकी रुचि सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में थी। 1960 में, जब वह विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे थे, तब उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया, और यहीं से उनका सियासी सफर शुरू हुआ।
उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्र ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। 1975 में ललित नारायण की हत्या ने जगन्नाथ मिश्र को गहरे सदमे में डाल दिया, लेकिन इस दुख ने उन्हें और भी मजबूत बना दिया।
ललित नारायण मिश्र एक प्रमुख राजनेता और रेल मंत्री रह चुके थे। उनकी हत्या के बाद, जगन्नाथ मिश्र बिहार में कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेता बन गए। 1975 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने जगन्नाथ मिश्र ने शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर जोर दिया। उनके कार्यकाल में बिहार विश्वविद्यालय में कई सुधार और ग्रामीण विकास की योजनाएं शुरू हुईं। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वह आम जनता से सीधे जुड़ते थे, और उनकी सादगी और सहजता ने उन्हें जनता का नेता बना दिया। वह 38 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री बने, जो उस समय देश के सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में से एक थे।
हर सियासी कहानी में कुछ मोड़ आते हैं, और जगन्नाथ मिश्र की कहानी भी इससे अछूती नहीं रही। 1990 के दशक में चारा घोटाला सामने आया, जिसने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया। 2013 में, जगन्नाथ मिश्र को इस घोटाले में दोषी ठहराया गया।
चार साल की सजा और दो लाख रुपए के जुर्माने ने उनकी छवि को धक्का पहुंचाया, लेकिन उनके समर्थक मानते हैं कि वह सियासी साजिश का शिकार हुए। उन्होंने हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा किया और कहा कि वह बिहार के विकास के लिए समर्पित थे।
जगन्नाथ मिश्र की कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि उस समय की है, जब बिहार सामाजिक और आर्थिक बदलाव के दौर से गुजर रहा था। उनके समर्थक उन्हें एक दूरदर्शी नेता मानते हैं, जिसने शिक्षा और विकास को बढ़ावा दिया। वहीं, आलोचक उनकी सत्ता की भूख और चारा घोटाले में संलिप्तता पर सवाल उठाते हैं।
शिक्षक, अर्थशास्त्री, लेखक और राजनेता के रूप में उनकी पहचान ने उन्हें बिहार के इतिहास में अमर कर दिया। सौम्य व्यक्तित्व, मैथिल संस्कृति के प्रति गहरा लगाव और जनता से सीधे जुड़ाव ने उन्हें एक अलग पहचान दी। मिथिला क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले जगन्नाथ मिश्र ने मैथिल संस्कृति को हमेशा बढ़ावा दिया। उनके कार्यकाल में कई सांस्कृतिक आयोजनों को सरकारी संरक्षण मिला।
उनका एक अनोखा योगदान उर्दू को बिहार की दूसरी राजभाषा का दर्जा देना था। 1980 के दशक में उनके इस फैसले ने अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिम समुदाय का दिल जीत लिया। इस कदम ने उन्हें ‘मौलाना मिश्रा’ की उपाधि दिलाई और उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का प्रिय बना दिया।
वहीं, मैथिल ब्राह्मणों और मिथिलांचल के लोगों में भारी नाराजगी फैल गई। मैथिली भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने की मांग दशकों से चली आ रही थी और उन्हें लगता था कि उर्दू को प्राथमिकता देकर उनकी सांस्कृतिक पहचान को नजरअंदाज किया गया।
विरोध की आग मिथिलांचल से शुरू होकर पूरे बिहार में फैल गई। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस फैसले के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया।
19 अगस्त 2019 को लंबी बीमारी (कैंसर) के बाद दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बलुआ (सुपौल) में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। बिहार सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की थी।