मार्गशीर्ष अमावस्या: पितरों के तर्पण में काला तिल का महत्व क्या है?
सारांश
Key Takeaways
- मार्गशीर्ष अमावस्या पितरों के प्रति श्रद्धा का दिन है।
- काले तिल का तर्पण विशेष लाभ देता है।
- इस दिन किए गए दान और तर्पण का कई गुना पुण्य मिलता है।
- पितरों को प्रसन्न करने के लिए जल और काले तिल का उपयोग करें।
- पीपल के पेड़ में जल देना शुभकारी होता है।
नई दिल्ली, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हर महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहते हैं। इस दिन पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने का एक विशेष विधान है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि अमावस्या को पितरों की कृपा प्राप्त करने का विशेष दिन माना जाता है, और इस दिन काले तिल के साथ तर्पण करने से अद्वितीय लाभ होता है।
दृक पंचांग के अनुसार, यह अमावस्या 19 नवंबर को सुबह 9:43 बजे से आरंभ होगी और 20 नवंबर को दोपहर 12:16 बजे तक रहेगी। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पितरों को जल या तर्पण देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
मार्गशीर्ष अमावस्या को पितृ तर्पण, दान-पुण्य, और भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। मार्गशीर्ष मास को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्” कहकर सबसे श्रेष्ठ मास बताया है। इस मास की अमावस्या पर पितरों को तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और कुल में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन किए गए दान, जप, तप और स्नान का कई गुना पुण्य प्राप्त होता है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए काले तिल और जल के साथ तर्पण या जल देना विशेष माना गया है। अब सवाल यह है कि पितरों की आराधना में काले तिल का महत्व क्यों है?
हिंदू धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि काले तिल पितरों के लिए अत्यंत प्रिय और तृप्ति देने वाले होते हैं। यह मान्यता है कि काले तिल में सभी तीर्थों का पुण्य समाहित होता है। इसलिए जहां गंगा-यमुना जाना संभव नहीं है, वहां काले तिल मिले जल का उपयोग गंगा जल के समान फल देता है। काले तिल में सूर्य और अग्नि की ऊर्जा होती है। पितर सूक्ष्म लोक में निवास करते हैं, उन्हें ठोस भोजन नहीं मिल पाता। काले तिल की सूक्ष्म ऊर्जा उन्हें शक्ति और तृप्ति प्रदान करती है।
काले रंग का संबंध शनि और यम से है। काले तिल अर्पित करने से पितृ दोष, कुल में आने वाली बाधाएँ, संतान-दोष, धन-हानि आदि दोष मिटते हैं, और उन्नति के द्वार खुलते हैं। काला तिल पितरों की आत्मा को शांति और शीतलता प्रदान करता है और मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है। इसलिए पितृपक्ष, अमावस्या या श्राद्ध में 'तिलोदकं स्वधा नमः' कहकर काले तिल मिश्रित जल अर्पित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ में जल देना और दीपक जलाना भी शुभकारी होता है।