क्या मोहन भागवत ने इंदौर में चींटी से जीवन जीने का मंत्र दिया?

सारांश
Key Takeaways
- चींटी से सीखें, छोटे कदम उठाएं।
- ज्ञान और कर्म का महत्व।
- एकाग्रता से नर्मदा के दर्शन करें।
- हर व्यक्ति की मान्यता का सम्मान करें।
- परिवार और संस्कारों की अहमियत।
इंदौर, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में कदम रखा। यहाँ उन्होंने मध्य प्रदेश के मंत्री प्रह्लाद पटेल द्वारा लिखित पुस्तक 'नर्मदा परिक्रमा' के विमोचन समारोह में भाग लिया। इस आयोजन के दौरान, मोहन भागवत ने सभा को सम्बोधित करते हुए चींटी से जीवन जीने का मंत्र साझा किया।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग बचपन से ही सभी इच्छाओं का त्याग करने में सफल होते हैं, लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं होता। एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह मार्ग एक चींटी के समान होता है, जो धीरे-धीरे छोटे-छोटे कदम उठाकर फल की ओर अग्रसर होती है। जिस फल को पक्षी एक पल में प्राप्त कर लेता है, चींटी वहां धीरे-धीरे पहुँचती है और अपने छोटे से मुँह से उतना ही रस चूसती है जितना उसमें समा सकता है। इसे पिपीलिका मार्ग कहा जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि दुनिया में विभिन्न प्रकार के लोग हैं और सभी के लिए रास्ते हैं। किसी भी व्यक्ति की मान्यता में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता है। यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने रास्ते को पहचानकर कैसे चलते हैं। कभी-कभी उत्तम मार्ग को मनोयोग से अपनाने पर भी जो प्राप्त नहीं होता, वह सामान्य लोग इस चींटी के कदम से हासिल कर लेते हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि एकाग्रता के साथ मां नर्मदा के दर्शन करो। इससे तुम इस नाटकीय संसार से दूर जाकर अपने वास्तविक स्वरूप में लौट सकोगे। यह अनुभव भक्ति और भाव के बिना संभव नहीं है। यदि कोई दृढ़ता से मानता है कि नर्मदा का जल केवल हाइड्रोजन ऑक्साइड है, तो यह उनके लिए नहीं है, क्योंकि उनके लिए इसका कोई महत्व नहीं है।
उन्होंने कहा कि हमने विश्व का नेतृत्व किया है, लेकिन कभी किसी राष्ट्र पर विजय नहीं पाई, न ही किसी के व्यापार को दबाया। जहाँ भी गए, वहां हमने सभ्यता और ज्ञान प्रदान किया। आज वह संवाद गायब है।
भागवत ने कहा कि आज मनुष्य के पास इतना ज्ञान है कि वह बहुत सी बातें प्रत्यक्ष करता है, लेकिन इससे पर्यावरण बिगड़ गया है। लोग माता-पिता को अनदेखा कर रहे हैं, क्योंकि उनके अंदर संस्कार की कमी है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, "यह आवश्यक है: ज्ञान और कर्म, ये दोनों मार्ग हैं। यह आकाश में उड़ने या चींटी की तरह कदम दर कदम आगे बढ़ने जैसा है।"
उन्होंने कहा, "जीवन का ज्ञान, जो हमें प्रतिदिन सिखाता है, हमारे साथ है। यह हमारे तपस्वी संत, हमारी प्रकृति, हमारे पहाड़, नदियाँ और पशु-पक्षी हैं। हम सबकी पूजा करते हैं। हर जगह चेतना है, और हर जगह पवित्रता है।"