क्या ऑपरेशन सिंदूर दिखाता है कि जब तीनों सेनाएँ मिलकर काम करती हैं तो उनकी ताकत बढ़ जाती है? : राजनाथ सिंह

सारांश
Key Takeaways
- ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य तीनों सेनाओं की एकता को बढ़ावा देना है।
- साइबर सुरक्षा के मानकों का एकीकरण आवश्यक है।
- 21वीं सदी में सुरक्षा का स्वरूप बदल गया है।
- तीनों सेवाओं में सहयोग की आवश्यकता है।
- एकीकृत त्रि-सेवा सूची प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की योजना है।
नई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हाल ही में, हमारी सेनाओं ने ऑपरेशन सिंदूर को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह ऑपरेशन इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि जब हमारी सेनाएँ एकजुट होकर कार्य करती हैं, तो उनकी संयुक्त शक्ति कितनी बढ़ जाती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह बात सोमवार को दिल्ली में कही।
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, भारत ने अपने एयर डिफेंस में एक अद्वितीय सामंजस्य का प्रदर्शन किया, जो महत्वपूर्ण साबित हुआ। भारतीय वायुसेना का इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम को थलसेना के आकाशतीर और नौसेना के त्रिगुण सिस्टम के साथ आसानी से एकीकृत किया गया, जो इस सफलता की नींव थी। इन सिस्टम्स की त्रि-सेवा सिनर्जी ने एकीकृत और रियल टाइम परिचालन चित्र प्रदान किया, जिससे कमांडर्स को त्वरित और सटीक निर्णय लेने की क्षमता मिली।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को वायुसेना द्वारा आयोजित त्रि-सेवा संगोष्ठी में हिस्सा लेते हुए कहा कि संयुक्तता, सामंजस्य और भविष्य के लिए तैयार सशस्त्र सेनाओं पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि इंटीग्रेटेड एयर कमांड और कंट्रोल सिस्टम ने आकाशतीर और त्रिगुण के सहयोग से एक मजबूत आधार प्रदान किया और कमांड एवं कंट्रोल सिस्टम को नए स्तर पर पहुँचाया।
इस प्रक्रिया के माध्यम से केवल स्थिति की जानकारी में वृद्धि नहीं हुई, बल्कि हर सैन्य कार्रवाई सटीक और प्रभावी बनी। रक्षा मंत्री ने कहा, "यही असली सामूहिकता है, जहां तीनों सेनाएं मिलकर एकता और स्पष्टता के साथ निर्णायक परिणाम प्राप्त करती हैं।" उन्होंने बताया कि आजकल हमारे सामने साइबर हमले और सूचना युद्ध का नया खतरा भी है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि अब तक जो मूल्य और अनुभव हमारी सेनाओं में संचित हुए हैं, वे केवल किसी एक सेवा तक सीमित रह गए हैं। अर्थात यदि थलसेना ने कुछ सीखा, तो वह केवल थलसेना में रहा, और यदि नौसेना ने कुछ सीखा, तो वह केवल नौसेना में।
उन्होंने स्पष्ट किया कि 21वीं सदी में सुरक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है और खतरे पहले से कहीं अधिक जटिल हो गए हैं। आज भूमि, जल, वायु, अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। ऐसे समय में कोई भी सेवा (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) इस सोच के साथ अलग नहीं रह सकती कि वह अकेले अपने क्षेत्र की सभी चुनौतियों का सामना कर लेगी।
रक्षा मंत्री ने कहा कि आज सहक्रियता और सामूहिकता केवल इच्छित लक्ष्य नहीं, बल्कि संचालन की अनिवार्य आवश्यकता बन चुके हैं। यदि हमारे निरीक्षण और सुरक्षा मानक अलग-अलग रहेंगे, तो कठिन परिस्थितियों में भ्रम उत्पन्न होगा। छोटी तकनीकी गलती भी व्यापक प्रभाव पैदा कर सकती है। लेकिन जब मानक समान होंगे, तो समन्वय बेहतर होगा और सैनिकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि मानकीकरण का अर्थ यह नहीं है कि आर्मी, नेवी, एयरफोर्स की विशिष्टता समाप्त हो जाएगी। तीनों सेनाओं की अपनी ताकत और कार्यशैली है। इसलिए, एक ही प्रक्रिया हर सेवा पर लागू नहीं की जा सकती। हमारा लक्ष्य एक साझा आधार तैयार करना होना चाहिए।
इसी दृष्टि से, सी-आई-सी-जी चरण-3 के प्रस्ताव पर रक्षा मंत्रालय की उच्च स्तरीय बैठक में, रक्षा मंत्री ने निर्देश दिया कि एक संपूर्ण भारतव्यापी एकीकृत त्रि-सेवा सूची प्रबंधन प्रणाली विकसित की जाए। इस दिशा में त्रि-सेवा लॉजिस्टिक अनुप्रयोग पर काम शुरू हो चुका है। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमें पुराने अलगाव को तोड़ना होगा और सामूहिकता की दिशा में कदम बढ़ाना होगा। जब तीनों सेनाएँ एक स्वर में काम करेंगी, तभी हम हर मोर्चे पर विरोधियों को करारा जवाब दे पाएंगे और राष्ट्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा पाएंगे।