क्या पितृ पक्ष में श्राद्ध अनुष्ठानों में काले तिल का प्रयोग किया जाता है? जानें पौराणिक कथा और मान्यता

सारांश
Key Takeaways
- पितृ पक्ष में काले तिल का विशेष महत्व है।
- यह भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है।
- काले तिल के साथ कुशा का उपयोग आवश्यक है।
- काले तिल का उपयोग पितृ दोष को शांत करने में मदद करता है।
- सफेद तिल का उपयोग शुभ कार्यों में किया जाता है।
नई दिल्ली, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का अत्यधिक महत्व है। यह माना जाता है कि इस समय पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं। उनकी तृप्ति और शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस प्रक्रिया में तिल का उपयोग आवश्यक समझा जाता है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसमें केवल काले तिल का ही उपयोग किया जाता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, काले तिल और कुशा दोनों का उद्भव भगवान विष्णु के शरीर से हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को अत्याचारों का शिकार बनाया, तब भगवान विष्णु अत्यंत क्रोधित हुए। उस समय उनके शरीर से पसीने की बूंदें गिरीं, जो धरती पर काले तिल में परिवर्तित हो गईं। इसीलिए काले तिल को दिव्य और पवित्र माना जाता है। चूंकि भगवान विष्णु को पितरों का आराध्य माना जाता है, इसलिए पितृ तर्पण में काले तिल का विशेष महत्व है।
मान्यता है कि काले तिल में पितरों को आकर्षित करने और तर्पण स्वीकार करवाने की शक्ति होती है। जब जल के साथ काले तिल अर्पित किए जाते हैं, तो पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा धार्मिक आस्था के साथ-साथ ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितृ दोष से जुड़े ग्रह शनि, राहु और केतु को शांत करने के लिए काले तिल का उपयोग किया जाता है। श्राद्ध के दौरान काले तिल अर्पित करने से इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और परिवार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
यहां यह समझना आवश्यक है कि श्राद्ध और तर्पण में केवल काले तिल का उपयोग होता है, सफेद तिल का नहीं। ज्योतिष में सफेद तिल का संबंध चंद्रमा और शुक्र से माना जाता है। इसका उपयोग शुभ कार्यों, प्रसाद और सुख-समृद्धि से जुड़े कर्मकांडों में होता है। जबकि पितृ कर्म गंभीर और आत्मा की शांति से जुड़ा अनुष्ठान है, इसलिए उसमें काले तिल को ही प्रधानता दी जाती है।
श्राद्ध विधि में काले तिल के साथ-साथ कुशा का प्रयोग भी आवश्यक है। कुशा को पवित्र माना गया है क्योंकि इसकी जड़ में भगवान ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और शीर्ष पर भगवान शिव का वास माना जाता है। इस कारण पितृ कर्म में कुशा का प्रयोग अनिवार्य है। हालांकि, पूजा-पाठ जैसे शुभ कार्यों में भी इसका उपयोग किया जाता है।