पुराने कुओं का पानी इतना मीठा क्यों होता था? जानिए इसके पीछे का देसी विज्ञान
सारांश
Key Takeaways
- तांबा पानी को शुद्ध करता है।
- चूना पत्थर पानी के pH को संतुलित करता है।
- प्राकृतिक तरीके से पानी को साफ किया जा सकता है।
- पुरानी तकनीकों में छिपा है विज्ञान।
- हड्डियों के लिए पोषण प्रदान करता है।
नई दिल्ली, 8 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। क्या आपने कभी सोचा कि प्राचीन काल में गांवों के कुओं का पानी वर्षों तक इतना मीठा, ठंडा और शुद्ध कैसे रहता था? आजकल हम आरओ, यूवी, फिल्टर और कई अन्य मशीनों पर निर्भर हैं, लेकिन हमारे दादा-परदादा बिना किसी मशीन के ऐसा पानी पीते थे, जो न तो खराब होता था और न ही उससे बीमारियां फैलती थीं।
इसका रहस्य किसी जादू में नहीं, बल्कि उनकी प्राकृतिक और वैज्ञानिक सोच में था। उन दिनों कुएं की तलहटी में तांबा और चूना पत्थर डाला जाता था, जो पानी को साफ और सेहतमंद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
प्राचीन समय में तांबे के बर्तन हर घर में होते थे और कुओं में भी तांबे की चीजें इस्तेमाल की जाती थीं। इसका कारण था तांबे की प्राकृतिक एंटीबैक्टीरियल क्षमता। जैसे ही तांबा पानी के संपर्क में आता है, इसके आयन धीरे-धीरे पानी में घुलते हैं और बैक्टीरिया, वायरस और कई प्रकार के हानिकारक कीटाणुओं को समाप्त कर देते हैं।
आज की मॉडर्न साइंस भी मानती है कि कॉपर प्यूरीफिकेशन एक बेहतरीन प्राकृतिक तरीका है। यही वजह है कि पहले का पानी खराब नहीं होता था और लोग पेट से जुड़ी बीमारियों से भी काफी हद तक सुरक्षित रहते थे।
अब बात करते हैं चूना पत्थर की। कुओं में इसका बड़ा उपयोग होता था क्योंकि यह पानी के पीएच को संतुलित करता था। अगर पानी ज्यादा अम्लीय होता, तो उसे सामान्य बनाता था। अगर ज्यादा क्षारीय होता, तो उसे भी संतुलित करता था। इसके अलावा, चूना पत्थर पानी में मौजूद मिट्टी और अन्य कणों को सोखकर नीचे बैठा देता था, जिससे ऊपर का पानी साफ और पारदर्शी हो जाता था।
इतना ही नहीं, इसमें प्राकृतिक रूप से कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे मिनरल भी होते थे, जो धीरे-धीरे पानी में मिलकर उसे और पौष्टिक बनाते थे। यही कारण है कि लोग उस पानी को मिनरल वाटर कहे बिना भी रोज पीते थे और उनकी हड्डियां मजबूत बनी रहती थीं।
आज भले ही तकनीक बहुत आगे बढ़ गई हो और मशीनों ने हमारा काम आसान कर दिया हो, लेकिन सच्चाई यह है कि हमारी पुरानी परंपराओं और देसी तकनीकों में भी गहरा विज्ञान छिपा था। फर्क बस इतना था कि पहले उसे कोई बड़ा नाम नहीं दिया जाता था, बस काम चुपचाप अपनी जगह करता रहता था।