क्या पूर्वोत्तर के महायोद्धा 'लाचित बरफुकन' की शौर्यगाथा पर आधारित पुस्तक का विमोचन हुआ?
सारांश
Key Takeaways
- लाचित बरफुकन की गाथा को उजागर करती पुस्तक।
- सैन्य कौशल और ऐतिहासिक योगदान का प्रामाणिक विवरण।
- असम के वीर सेनापति का अद्भुत जीवन।
- भारत की सभ्यता में पूर्वोत्तर का महत्त्व।
- मातृभूमि के प्रति प्रेम का संदेश।
नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। पूर्वोत्तर अध्ययन केंद्र, फोन फाउंडेशन और प्रभात प्रकाशन के सहयोग से शुक्रवार को केशव कुञ्ज में विचार–विनिमय सभागार में 'लाचित बरफुकन: महायोद्धा जिसने औरंगजेब की सेना को परास्त किया' नामक पुस्तक का भव्य विमोचन हुआ। यह पुस्तक असम के महान योद्धा, वीर सेनापति और राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक लाचित बरफुकन के जीवन, सैन्य कौशल और ऐतिहासिक योगदान का प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करती है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के विदेश राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरिटा और विशिष्ट अतिथि आईसीएसएसआर के सदस्य सचिव प्रोफेसर धनंजय सिंह उपस्थित रहे। इसके साथ ही दिल्ली-एनसीआर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से कई प्रोफेसर, शोधार्थी, लेखक, चिंतक और बौद्धिक समुदाय के सदस्य भी कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम का स्वागत भाषण पूर्वोत्तर अध्ययन केंद्र की प्रमुख डॉ. वेलेंटीना ब्रह्मा ने दिया।
मुख्य अतिथि पबित्रा मार्गेरिटा ने कहा, “लाचित बरफुकन का समर्पण इस राष्ट्र की आत्मा की विजय है। मैं स्वयं अहोम समुदाय से आता हूं, इसलिए यह विषय मेरे लिए विशेष गौरव का है। उनकी वीरता केवल असम का इतिहास नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत की शौर्यगाथा का पुनःस्थापन है। उनकी विजय किसी एक युद्ध की नहीं, बल्कि उस राष्ट्र-आत्मा की विजय थी जिसे कभी परास्त नहीं किया जा सकता।”
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर धनंजय सिंह ने कहा, “लाचित बरफुकन केवल सेनानायक नहीं, बल्कि अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति के कालजयी आदर्श हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि शक्ति केवल शस्त्रों में नहीं, बल्कि मातृभूमि और संस्कृति के प्रति अटूट प्रेम में निहित होती है। असम केवल एक राज्य नहीं, बल्कि भारत की सभ्यता का पूर्वी द्वार है, जहां से भक्ति, संस्कृति और ज्ञान सदियों से प्रवाहित होते आए हैं।”
पुस्तक के लेखक एवं जेएनयू के सह-प्राध्यापक डॉ. रक्तिम पातर ने कहा, “भारत के इतिहास लेखन में अक्सर पूर्वोत्तर क्षेत्र को परिधि पर रखा गया है। यह पुस्तक इस धारणा को चुनौती देती है और यह स्थापित करती है कि यह क्षेत्र सदैव भारतीय सभ्यता का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा है। हिंदी माध्यम में इस कृति का प्रकाशन देश की जनता तक इस गौरवशाली इतिहास को पहुंचाने का प्रयास है।”
प्रभात प्रकाशन की ओर से प्रभात की विशेष उपस्थिति ने कार्यक्रम को और भी गरिमामय बना दिया। अंत में, पूर्वोत्तर अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष सुरेंद्र घोंगक्रोकता ने सभी अतिथियों, सहभागी विद्वानों और आयोजकों का आभार व्यक्त करते हुए समारोह के सफल समापन की घोषणा की।