क्या श्रीकालहस्ती मंदिर में भक्ति का अद्भुत अनुभव है?
सारांश
Key Takeaways
- श्रीकालहस्ती मंदिर की भक्ति अद्वितीय है।
- यहां की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- कन्नप्पा नयनार की कथा प्रेरणादायक है।
- नवविवाहित जोड़ों के लिए यहाँ आना अनिवार्य है।
- राहु-केतु पूजा का विशेष महत्व है।
नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक श्रीकालहस्ती भक्तों की अटूट भक्ति का प्रतीक है। यह मंदिर अपने अद्वितीय इतिहास और धार्मिक मान्यता के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। भक्त दूर-दूर से मोक्ष प्राप्ति और राहु-केतु के दोषों से मुक्ति पाने के लिए यहाँ आते हैं। नवविवाहित जोड़ों के लिए भी इसका दर्शन करना आवश्यक माना जाता है।
श्रीकालहस्ती मंदिर तिरुपति के निकट स्वर्णमुखी नदी के किनारे स्थित है, और यह भगवान शिव के कालहस्तीश्वर रूप को समर्पित है। यहाँ भगवान शिव की पूजा वायु लिंगम के रूप में की जाती है। यह स्थान दक्षिण कैलाश के नाम से भी जाना जाता है, जहाँ भगवान शिव की उपस्थिति हमेशा विद्यमान है।
मंदिर के गर्भगृह में देवी पार्वती को माँ अंबिका के रूप में पूजा जाता है। इसे मोक्षधाम के रूप में माना जाता है, जहाँ भगवान शिव दक्षिणामूर्ति के रूप में भक्तों को मोक्ष का आश्वासन देते हैं।
यहाँ की राहु-केतु पूजा देश के सबसे प्रसिद्ध विधियों में से एक है, जो राहु काल के समय की जाती है। भक्त यहाँ आकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
शादी के तीन महीने के भीतर नवविवाहित जोड़ों का मंदिर में दर्शन करने आना अनिवार्य माना जाता है। यहाँ का आशीर्वाद लेने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं और वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
कई पौराणिक कथाएं इस मंदिर से जुड़ी हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा कन्नप्पा नयनार की है। कन्नप्पा एक शिकारी था, जिसने जंगल में एक अद्भुत शिवलिंग देखा। उसने अपनी भक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें अपनी आँखें अर्पित कीं। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें मोक्ष प्रदान किया।