क्या पूजा पाल को बाहर का रास्ता दिखाकर सपा ने 2027 के लिए सेफ पॉलिटिक्स का संकेत दिया?

सारांश
Key Takeaways
- अखिलेश यादव ने पूजा पाल को पार्टी से बाहर किया।
- यह कदम 2027 के चुनाव की तैयारी का हिस्सा है।
- राजनीतिक जानकारों का मानना है कि क्रॉस वोटिंग का दुष्परिणाम हुआ।
- सपा ने अनुशासन बनाए रखने का प्रयास किया है।
- यह घटना राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक है।
लखनऊ, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। विधानसभा सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने विधायक पूजा पाल को पार्टी से बाहर निकालकर पिछड़ों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। वे 2027 के चुनाव में किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, इसीलिए ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि सपा विधायक पूजा पाल ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करके पार्टी की अनुशासन को तोड़ा था, लेकिन अखिलेश यादव ने पहले इसे नजरअंदाज किया। विधानसभा सत्र के दौरान, पूजा पाल ने योगी सरकार की प्रशंसा की, जो सपा प्रमुख के लिए बर्दाश्त करने योग्य नहीं था, और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।
सूत्रों का कहना है कि पूजा पाल को अखिलेश ने पहले से ही निष्कासित सूची में डाल रखा था। विधानसभा सत्र में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उनके पति राजू पाल की हत्या के मामले में न्याय दिलाने का काम किया। इससे सपा को एक स्पष्ट संदेश मिला कि जब तक पार्टी में समर्पित लोग नहीं होंगे, तब तक कोई भी तथ्यात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
राजीव श्रीवास्तव, वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ, ने कहा कि पूजा पाल का सरकार की तारीफ करना लक्ष्मण रेखा पार करने जैसा था। सपा अब उन सभी विधायकों पर कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है, जिन्होंने क्रॉस वोटिंग की है।
अखिलेश यादव का मानना है कि पीडीए के फॉर्मूले से भाजपा को मात दी जा सकती है, इसलिए वे हर कदम सोच-समझकर उठा रहे हैं।
सपा के प्रवक्ता अशोक यादव का कहना है कि पूजा पाल ने मुख्यमंत्री की प्रशंसा की है, जबकि उनकी पार्टी की अन्य विधायक अभी भी न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह कदम पूरी तरह से उचित है।
भाजपा प्रवक्ता आनंद दुबे का कहना है कि सपा अपने कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई कर रही है, जिससे उन्हें कोई समस्या नहीं है। लेकिन यह भेदभावपूर्ण है, क्योंकि एक पिछड़ी महिला ने सरकार की तारीफ की है।