क्या सुल्तानगंज विधानसभा सीट पर जदयू की पकड़ से राजद-कांग्रेस गठबंधन को बड़ी चुनौती मिलेगी?

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क्या सुल्तानगंज विधानसभा सीट पर जदयू की पकड़ से राजद-कांग्रेस गठबंधन को बड़ी चुनौती मिलेगी?

सारांश

सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र की राजनीति पर एक नजर। क्या जदयू का प्रभाव कायम रहेगा, या राजद-कांग्रेस गठबंधन इसे चुनौती देगा? जानिए इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के इतिहास, संस्कृति और वर्तमान चुनावी समीकरण के बारे में।

Key Takeaways

  • सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र बिहार के बांका लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।
  • यहाँ की कांवड़ यात्रा लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
  • राजनीतिक दृष्टि से यह क्षेत्र जदयू के लिए एक गढ़ बना हुआ है।
  • जातिगत समीकरण चुनावी परिणामों पर गहरा असर डालते हैं।
  • महाभारत काल से जुड़ा हुआ यह क्षेत्र ऐतिहासिक महत्व रखता है।

पटना, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र बिहार के बांका लोकसभा क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण मतदाताओं से भरा हुआ है, जिसमें सुल्तानगंज और शाहकुंड दो प्रमुख विकास खंड शामिल हैं। यह न केवल अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

सुल्तानगंज का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह क्षेत्र महाभारत काल के अंग देश से संबंधित है और यहाँ के कर्ण जैसे महान योद्धाओं की गाथाएँ जुड़ी हैं। यहाँ की एक गुप्तकालीन कांस्य बुद्ध प्रतिमा, जो वर्तमान में ब्रिटेन के संग्रहालय में है, इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है।

महर्षि जह्नु से संबंधित गंगा नदी को निगलने की कथा यहाँ की पौराणिक धरोहर में शामिल है। गंगा नदी के किनारे स्थित अजगैबीनाथ मंदिर इस क्षेत्र की धार्मिक पहचान है। यह मंदिर गंगा में फैली एक चट्टानी पहाड़ी पर स्थित है, जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाता है। हर वर्ष श्रावण मास में यहाँ से देवघर तक की कांवड़ यात्रा लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है, जो न केवल धार्मिक ऊर्जा को संचारित करती है बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ करती है।

राजनीतिक दृष्टिकोण से, सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र का इतिहास काफी समृद्ध है। 1951 में स्थापित इस क्षेत्र ने पहले कांग्रेस के गढ़ के रूप में पहचान बनाई, जिसने यहाँ से सात बार जीत दर्ज की। जनता दल, जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी यहाँ से प्रतिनिधित्व किया। लेकिन 2000 के बाद से यह सीट निरंतर जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू के कब्जे में रही है। जदयू ने यहाँ से छह बार विजय प्राप्त की है।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में, 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के ललित नारायण मंडल ने कांग्रेस के ललन कुमार को हराया था। इस बार भी मुकाबला कड़ा होने की संभावना है।

राजद ने चंदन कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि जन सुराज ने राकेश कुमार को मैदान में उतारा है। जदयू ने फिर से ललित नारायण मंडल को अपना प्रत्याशी घोषित किया है।

जातिगत समीकरणों के अनुसार, सुल्तानगंज में मुस्लिम और यादव वोटर्स की अच्छी संख्या है। इसके अलावा, भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी और रविदास मतदाता भी यहाँ मौजूद हैं, जो चुनावी मुकाबले को और भी दिलचस्प बनाते हैं।

Point of View

बल्कि यहाँ के जातिगत समीकरण भी चुनावी परिणामों पर प्रभाव डालते हैं। जदयू, राजद और कांग्रेस के बीच की प्रतिस्पर्धा दर्शाती है कि बिहार की राजनीति कितनी जटिल और विविधतापूर्ण है।
NationPress
23/10/2025

Frequently Asked Questions

सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र का इतिहास क्या है?
सुल्तानगंज विधानसभा क्षेत्र का इतिहास 1951 से शुरू होता है और यह पहले कांग्रेस का गढ़ रहा है।
इस बार के चुनाव में प्रमुख उम्मीदवार कौन हैं?
इस बार जदयू के ललित नारायण मंडल, राजद के चंदन कुमार और जन सुराज के राकेश कुमार मुख्य उम्मीदवार हैं।
सुल्तानगंज में कौन से जातिगत समीकरण हैं?
यहाँ मुस्लिम, यादव, भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी और रविदास मतदाताओं की अच्छी संख्या है।