क्या हिमाचल में अनियंत्रित विकास से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई और 23 सितंबर को फैसला सुनाएगा

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने अनियंत्रित विकास से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लिया है।
- ग्लेशियरों का पिघलना और जलवायु परिवर्तन गंभीर चिंताएं हैं।
- कोर्ट ने सुझाव दिया कि एक समिति का गठन किया जाए।
- राज्य सरकार को चार सप्ताह में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है।
- 23 सितंबर को कोर्ट का फैसला आने वाला है।
नई दिल्ली, १५ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित विकास के कारण पर्यावरण पर हो रहे नकारात्मक प्रभावों के मामले में स्वत: संज्ञान लिया है। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने फिलहाल अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और आदेश २३ सितंबर को पारित किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान हिमाचल में एक और गंभीर पर्यावरणीय घटना हुई, जो चिंता का विषय है। कोर्ट द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी ने सुझाव दिया कि मामले की गहराई को देखते हुए एक समिति का गठन किया जा सकता है जो इसके विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जांच करे।
हिमाचल प्रदेश सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियरों का एक चौथाई हिस्सा गायब हो चुका है, जिससे नदियों का तंत्र प्रभावित हुआ है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन का पहाड़ों की सुरक्षा पर भी गंभीर असर पड़ा है।
इससे पहले, राज्य में बिगड़ती स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन का राज्य पर 'स्पष्ट और चिंताजनक प्रभाव' पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर अनियंत्रित विकास इसी तरह जारी रहा, तो हिमाचल प्रदेश एक दिन नक्शे से गायब हो सकता है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर पर्यावरण संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों और भविष्य की योजनाओं पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
राज्य सरकार को यह बताना था कि उसने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं और भविष्य को लेकर क्या योजना है। सोमवार को राज्य सरकार ने कोर्ट के निर्देश के अनुसार रिपोर्ट पेश की है।