क्या पूर्व विधायक सुरेश राठौर का निष्कासन भाजपा में यूसीसी का पहला बड़ा प्रभाव है?

सारांश
Key Takeaways
- सुरेश राठौर का निष्कासन भाजपा की नीति के खिलाफ उनकी दूसरी शादी के कारण हुआ।
- पार्टी ने अनुशासनहीनता को गंभीरता से लिया है।
- यह घटना उत्तराखंड में यूसीसी के प्रभाव को दर्शाती है।
- सार्वजनिक छवि को बनाए रखने के लिए पार्टी ने कड़ा कदम उठाया।
- सुरेश राठौर का व्यवहार पार्टी की मर्यादा के खिलाफ था।
देहरादून, 28 जून (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) लागू होने के साथ ही इसका पहला बड़ा राजनीतिक प्रभाव देखने को मिला है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता एवं ज्वालापुर के पूर्व विधायक सुरेश राठौर को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया है।
यूसीसी के अंतर्गत दूसरी शादी को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके बावजूद, सुरेश राठौर ने सार्वजनिक रूप से अपनी दूसरी शादी की घोषणा की, जो पार्टी और सरकार की नीति के विरोध में मानी गई। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में राठौर की शादी की तस्वीरें भी थीं, जिससे पार्टी की छवि पर सवाल उठने लगे।
इस घटनाक्रम की शुरुआत उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से हुई, जहाँ राठौर ने अभिनेत्री उर्मिला सनावर से विवाह किया। इससे पहले दोनों के बीच विवाद और कानूनी मुकदमेबाजी भी चर्चित रही थी, लेकिन अचानक शादी की खबर और उसका वीडियो वायरल होने से भाजपा को पीछे हटना पड़ा।
प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने तुरंत कार्रवाई करते हुए सुरेश राठौर को कारण बताओ नोटिस जारी किया और सात दिन के भीतर जवाब मांगा गया। हालांकि, संतोषजनक उत्तर न मिलने पर पार्टी ने कठोर कदम उठाया।
प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के निर्देश पर महामंत्री राजेंद्र बिष्ट ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की घोषणा करते हुए राठौर को पार्टी से छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया।
नोटिस में स्पष्ट कहा गया कि सुरेश राठौर का आचरण पिछले कुछ समय से लगातार पार्टी की मर्यादा के खिलाफ रहा है। उनके बयानों और व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी गतिविधियों ने पार्टी की सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुँचाया है। पार्टी ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए कड़ी कार्रवाई की।
यह मामला एक राजनीतिक दल की आंतरिक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि उत्तराखंड में लागू यूसीसी के प्रति सरकार एवं सत्ताधारी दल कितने गंभीर हैं।