क्या ठुमरी क्वीन की जयंती पर हम संगीत की इस महान शख्सियत को याद कर सकते हैं?

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क्या ठुमरी क्वीन की जयंती पर हम संगीत की इस महान शख्सियत को याद कर सकते हैं?

सारांश

वाराणसी की गलियों में जन्मी ठुमरी क्वीन सिद्धेश्वरी देवी ने शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अमिट छाप छोड़ी। उनके संगीत में केवल ठुमरी ही नहीं, बल्कि अनेक रागों का समावेश था। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जानें उनके जीवन और संगीत की दास्तान।

Key Takeaways

  • सिद्धेश्वरी देवी ने ठुमरी को नया आयाम दिया।
  • उनका जन्म 8 अगस्त 1908 को वाराणसी में हुआ।
  • उन्होंने संगीत में अनेक रागों का समावेश किया।
  • उन्हें 'ठुमरी क्वीन' का खिताब दिया गया।
  • उनकी विरासत को उनकी बेटी सविता देवी ने आगे बढ़ाया।

वाराणसी, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। शिवनगरी काशी की संकीर्ण गलियों में सुर और ताल की महक बिखरी हुई है। यहीं, 8 अगस्त 1908 को एक ऐसी महान शख्सियत ने जन्म लिया, जिसने ठुमरी को न केवल नया आयाम दिया, बल्कि उसे शास्त्रीय संगीत की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। यह थीं सिद्धेश्वरी देवी, जिन्हें स्नेहपूर्वक ‘मां’ कहा गया और जिन्हें समकालीन गायिका केसरबाई केरकर ने ‘ठुमरी क्वीन’ का खिताब दिया।

बनारस घराने की इस गायिका ने खयाल, ध्रुपद, दादरा, टप्पा, कजरी, चैती, होरी और भजन के माध्यम से संगीत के हर रंग को जीवंत किया।

सिद्धेश्वरी देवी का जन्म वाराणसी के कबीर चौरा में एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ। बचपन में उन्हें ‘गोगो’ के नाम से पुकारा जाता था, लेकिन यह नाम जल्दी ही ठुमरी की दुनिया में चमक का प्रतीक बन गया। उनकी मौसी, बनारस घराने की प्रसिद्ध गायिका राजेश्वरी देवी ने उन्हें संगीत की शिक्षा दी। पंडित सिया जी मिश्र, बड़े रामदास जी, उस्ताद रज्जब अली खां और इनायत खां जैसे गुरुओं के सान्निध्य में उनकी प्रतिभा और निखरती चली गई।

सिद्धेश्वरी की गायिकी में ठहराव, भाव और बोल-बनाव की बारीकी के साथ बनारस घराने की विशेषता थी, उनकी ठुमरी में वात्सल्य, कृष्ण-भक्ति, श्रृंगार और विरह जैसे रस इतने स्वाभाविक ढंग से उभरते थे कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था।

एक इंटरव्यू में सिद्धेश्वरी जी ने बताया था, “संगीत मेरे लिए पूजा है। जब मैं गाती हूं, तो लगता है जैसे गंगा मैया और कृष्ण मुरारी मेरे सामने हैं।”

इस इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कैसे बनारस की गलियों, गंगा के घाटों और वहां की होली ने उनकी कजरी और होरी को प्रेरित किया। एक बार जब वह ‘सांझ भई घर आओ नंदलाला’ गा रही थीं, तो एक श्रोता मंच पर आकर बोलीं, “मुझे अपने बेटे की चिंता हो रही है, इजाजत दें।” सिद्धेश्वरी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आपने मेरी गायकी को सार्थक कर दिया, जाइए अपने लाल से मिलिए।”

गायिका की बेटी, ठुमरी गायिका सविता देवी ने उनके जीवन और संगीत पर आधारित किताब 'मां... सिद्धेश्वरी' में उनके बनारसी अंदाज और संगीत के प्रति समर्पण को बखूबी उकेरा है।

इस किताब में सिद्धेश्वरी के उस दौर की कहानी है, जब ठुमरी गायिकाओं को समाज में उपेक्षा झेलनी पड़ती थी। फिर भी, उन्होंने आध्यात्मिकता को ठुमरी में पिरोकर इसे सम्मान दिलाया।

गायिका से संबंधित एक किस्सा है, जब वह ओरछा के राजदरबार में गा रही थीं। कुछ लोगों की कानाफूसी से खलल पड़ने पर उन्होंने गायन रोककर गरजते हुए कहा, “संगीत सुनने की क्षमता नहीं, तो बाहर जाओ!” यह था उनका बनारसी अंदाज।

सिद्धेश्वरी देवी को पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। उनकी बेटी सविता देवी ने उनकी विरासत को ‘सिद्धेश्वरी देवी एकेडमी ऑफ इंडियन म्यूजिक’ के जरिए आगे बढ़ाया। 18 मार्च 1977 को उन्होंने अंतिम बार ‘राम-राम’ कहा, तो ठुमरी का एक युग समाप्त हो गया।

Point of View

बल्कि उसे समाज में एक नया स्थान भी दिलाया। उनका जीवन और संगीत आज भी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
NationPress
07/08/2025

Frequently Asked Questions

सिद्धेश्वरी देवी का जन्म कब हुआ था?
सिद्धेश्वरी देवी का जन्म 8 अगस्त 1908 को वाराणसी में हुआ था।
सिद्धेश्वरी देवी को कौन सा खिताब दिया गया था?
उन्हें समकालीन गायिका केसरबाई केरकर ने 'ठुमरी क्वीन' का खिताब दिया था।
सिद्धेश्वरी देवी की प्रमुख रचनाएं कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख रचनाओं में ठुमरी, खयाल, ध्रुपद, दादरा, और कजरी शामिल हैं।
सिद्धेश्वरी देवी को कौन से पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
सिद्धेश्वरी देवी की बेटी कौन हैं?
उनकी बेटी सविता देवी भी एक प्रसिद्ध ठुमरी गायिका हैं।