क्या वंदे मातरम को वह सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था? : जेपी नड्डा
सारांश
Key Takeaways
- वंदे मातरम का महत्व
- राजनीतिक विवाद
- संस्कृति में स्थान
- इतिहास की जानकारी
- नेताओं की प्रतिक्रियाएँ
नई दिल्ली, 11 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। वंदे मातरम को वह सम्मान नहीं मिला जो इसे मिलना चाहिए था। इस पर चर्चा के दौरान, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा ने यह बात कही।
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम को उचित सम्मान और स्थान नहीं मिला। उन्होंने इसके लिए उस समय के शासकों को जिम्मेदार ठहराया।
जेपी नड्डा के बयान पर, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूछा कि क्या वर्ष 1937 में जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। इस पर जेपी नड्डा ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नहीं थे, परंतु इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
नड्डा ने उस प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जिसमें वंदे मातरम को दो अंतरों तक सीमित करने का सुझाव दिया गया था। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में कहा गया था कि राष्ट्रीय आयोजनों में वंदे मातरम केवल पहले दो अंतरे गाए जाएं। आयोजकों को यह स्वतंत्रता थी कि वे वंदे मातरम के अलावा कोई और आपत्ति रहित गीत गाने का निर्णय लें।
इसलिए, मैं कहता हूं कि वंदे मातरम को वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था।
भाजपा सांसद जेपी नड्डा ने सदन में कहा कि संविधान सभा के तीन वर्ष के कार्यकाल में कुल 167 कार्य दिवस हुए, लेकिन राष्ट्रीय गान पर औपचारिक रूप से नौ मिनट से भी कम का समय दिया गया। कई सदस्यों द्वारा बार-बार मांग उठाए जाने के बावजूद, इस विषय पर विस्तृत चर्चा की अनुमति नहीं दी गई।
उन्होंने बताया कि 15 अक्टूबर 1937 को, मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ सेशन में वंदे मातरम के खिलाफ एक फतवा पास किया। जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध करने की बजाय, वंदे मातरम को लेकर एक जांच शुरू कर दी। 20 अक्टूबरनेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा और स्वीकार किया कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुस्लिम समुदाय को असहज कर सकती है।
नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जेपी नड्डा को टोकते हुए कहा कि आपके नेता ने इसे खुद स्वीकार किया था। आपके नेता उस समय की सरकार में शामिल थे। जिन चीजों में आपकी सहभागिता थी, आपके अध्यक्ष उसमें शामिल थे। उसी बात को आप यहां पर नकार रहे हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि क्या यह बहस राज्यसभा में वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर हो रही है या जवाहरलाल नेहरू पर। जेपी नड्डा ने कहा कि अंग्रेज वंदे मातरम से घबराते थे। उन्हें लगता था कि यह भारतीयों को जागरूक कर रहा है। वंदे मातरम की गूंज तमिलनाडु तक गूंजी। तमिलनाडु में हुए आंदोलनों में वंदे मातरम का गीत गाया गया। खुदीराम बोस जब फांसी के फंदे पर चढ़े, तो उनके आखिरी शब्द थे ‘वंदे मातरम।’
जेपी नड्डा ने कहा कि वंदे मातरम हम सबको प्रेरणा देने वाला और देश को एकता के साथ आगे बढ़ाने वाला गीत है।