क्या विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स घोटाला उजागर किया और मंडल कमीशन लागू किया?

Click to start listening
क्या विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स घोटाला उजागर किया और मंडल कमीशन लागू किया?

सारांश

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भारतीय राजनीति में एक अहम भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने बोफोर्स घोटाला उजागर किया और मंडल कमीशन लागू किया। जानिए उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं और उनके द्वारा किए गए कार्यों के बारे में।

Key Takeaways

  • बोफोर्स घोटाला का खुलासा करना।
  • मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करना।
  • राजनीतिक संघर्षों का सामना करना।
  • सत्ता की लालच से दूर रहना।
  • साधारण जीवन जीना।

नई दिल्ली, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में एवं बाद में भारत के प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पदों की जिम्मेदारी निभाई। उनके कार्यकाल में बोफोर्स घोटाला का खुलासा करना और मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाना अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। इसीलिए, वीपी सिंह को आज भी भारत में ‘मंडल के मसीहा’ और ‘भ्रष्टाचार-विरोधी नायक’ के रूप में याद किया जाता है।

आज ही के दिन, सत्रह वर्ष पहले, भारत ने अपने ईमानदार प्रधानमंत्रियों में से एक को खो दिया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह), जिन्हें लोग affectionately ‘राजा साहब’ कहते थे, 27 नवंबर 2008 को 77 वर्ष की आयु में कैंसर और किडनी फेलियर के कारण निधन हो गए।

वीपी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद के निकट दौलतपुर में मंदा की रियासत के राजा गोपाल शरण सिंह के घर हुआ था। उनकी शिक्षा इलाहाबाद और पुणे विश्वविद्यालय में हुई। राजनीति में आने से पहले उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत की।

सिंह ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से केंद्रीय मंत्री और फिर प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। वे पहले कांग्रेस के टिकट पर 1969 में विधायक बने। 1971 में सोरांव (इलाहाबाद) से सांसद चुने गए। 1980 में जब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी, उस दौरान वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और 1984-87 में केंद्रीय वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री (राजीव मंत्रिमंडल) रहे। उन्होंने 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक भारत के 7वें प्रधानमंत्री (जनता दल) के रूप में जिम्मेदारी निभाई।

वीपी सिंह के कार्यकाल के महत्वपूर्ण निर्णयों में 1987 में स्वीडिश रेडियो के खुलासे के आधार पर बोफोर्स में कमीशनखोरी का मुद्दा उठाना शामिल है। राजीव गांधी से उनके मतभेद इतने बढ़ गए कि उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। यही मुद्दा 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण बना।

इसके अलावा, मंडल कमीशन की सिफारिशों को भी वीपी सिंह के कार्यकाल में लागू किया गया। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने संसद में घोषणा की कि सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। इस फैसले ने भारतीय समाज को दो हिस्सों में बांट दिया। एक ओर पिछड़े वर्ग ने उन्हें मसीहा माना, वहीं दूसरी ओर ऊंची जातियों के युवाओं ने देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया। कई स्थानों पर आत्मदाह की घटनाएं भी हुईं। अंततः 10 नवंबर 1990 को भाजपा के समर्थन वापसी के बाद उनकी सरकार गिर गई।

सरकार जाने के बाद भी, वीपी सिंह ने कभी सत्ता की लालच नहीं की। 1996 में उन्हें कैंसर का पता चला, जिसका उन्होंने इलाज कराया, लेकिन उन्होंने सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लिया। अपने अंतिम दिनों में वे इलाहाबाद और दिल्ली में निवास कर रहे थे। 27 नवंबर 2008 को जब उनका निधन हुआ, तो न तो कोई राजकीय सम्मान था और न ही भव्य अंतिम यात्रा। केवल कुछ कार्यकर्ता और परिवार के सदस्य दिल्ली के निगमबोध घाट पर उपस्थित थे, क्योंकि उनकी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार बिना किसी दिखावे के हो।

Point of View

यह कहना गलत नहीं होगा कि वीपी सिंह ने अपने कार्यकाल में जो निर्णय लिए, वे भारतीय राजनीति के लिए मील का पत्थर साबित हुए। उनका साहस और दृढ़ता आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
NationPress
26/11/2025

Frequently Asked Questions

बोफोर्स घोटाला क्या था?
बोफोर्स घोटाला 1980 के दशक में भारतीय सेना को स्वीडिश कंपनी से तोपों की खरीद में हुए भ्रष्टाचार का मामला था।
मंडल कमीशन की सिफारिशें क्या थीं?
मंडल कमीशन ने पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सिफारिश की थी।
वीपी सिंह का राजनीतिक करियर कैसा था?
वीपी सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के प्रधानमंत्री का पद संभाला।
वीपी सिंह को लोग किस नाम से जानते थे?
वीपी सिंह को लोग प्यार से 'राजा साहब' के नाम से जानते थे।
वीपी सिंह का निधन कब हुआ?
वीपी सिंह का निधन 27 नवंबर 2008 को हुआ।
Nation Press