क्या वित्त वर्ष 26 में भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.5 प्रतिशत रहेगी और क्या आरबीआई कर सकता है रेपो रेट में कटौती?

सारांश
Key Takeaways
- भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना है।
- आरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता है।
- अमेरिका के टैरिफ का निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा।
- आर्थिक सुधार के संकेत महंगाई में कमी के रूप में दिख रहे हैं।
- बैंक ऋण वृद्धि दर 10 प्रतिशत हो गई है।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वित्त वर्ष 26 में 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। इसके साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस दौरान रेपो रेट में कटौती कर सकता है। यह जानकारी क्रिसिल की रिपोर्ट में दी गई है।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि अमेरिका द्वारा भारत पर लागू किया गया 50 प्रतिशत टैरिफ निर्यात और जीडीपी वृद्धि पर दबाव डालेगा। हालाँकि, ब्याज दरों में कटौती, अच्छी बारिश, कम मुद्रास्फीति, और कर राहत उपभोग को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
रिपोर्ट में बताया गया है कि रेपो रेट में कटौती और कैश रिसर्व रेश्यो में 100 आधार अंकों की कमी (जो कि सितंबर और दिसंबर में लागू होगी) मौजूदा वित्तीय परिस्थितियों में समर्थन दे सकती है।
वैश्विक उथल-पुथल के कारण पूंजी प्रवाह में अस्थिरता हो सकती है, जिससे अल्पावधि में रुपया दबाव में रह सकता है।
क्रिसिल ने यह उम्मीद जताई है कि आरबीआई मौद्रिक नीति कमेटी (एमपीसी) इस वित्त वर्ष में एक बार फिर ब्याज दरों में कटौती कर सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों (फरवरी-जुलाई) में महंगाई आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे बनी हुई है। अच्छे कृषि उत्पादन के कारण खाद्य मुद्रास्फीति को कम रहने की उम्मीद है। 29 अगस्त तक, खरीफ की बुवाई पिछले साल की तुलना में 2.9 प्रतिशत अधिक रही।
हालांकि, अधिक बारिश के कारण कुछ फसलों की पैदावार पर दबाव पड़ सकता है। कमोडिटी की कम कीमतें गैर-खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी का संकेत देती हैं। कम जीएसटी दरों के कारण भी इस वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति में गिरावट की संभावना है।
अगस्त में बैंक ऋण वृद्धि दर बढ़कर 10 प्रतिशत हो गई, जो जुलाई में 9.8 प्रतिशत थी और जून में समाप्त तिमाही में औसतन 9.6 प्रतिशत थी।