क्या घनी आबादी वाले शहरों में फेफड़ों और आंत में संक्रमण का खतरा ज्यादा है?

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क्या घनी आबादी वाले शहरों में फेफड़ों और आंत में संक्रमण का खतरा ज्यादा है?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि घनी आबादी वाले शहरों में आपके फेफड़ों और आंतों में संक्रमण का खतरा दोगुना हो सकता है? एक नई अध्ययन ने इस मुद्दे पर रोशनी डाली है, जो हर नागरिक की सेहत के लिए अति महत्वपूर्ण है। जानिए इस अध्ययन के निष्कर्ष और इसके पीछे की वैज्ञानिक खोजों के बारे में।

Key Takeaways

  • घनी आबादी वाले इलाकों में संक्रमण का खतरा दोगुना होता है।
  • एयरबोर्न बैक्टीरिया श्वसन और जठरांत्र संबंधी संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
  • पीएम 2.5 सूक्ष्म धूल के कण बैक्टीरिया को फैलाने में मदद करते हैं।
  • दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण उच्चतम स्तर पर है।
  • शोध से पता चलता है कि शहरी स्वास्थ्य नियोजन के लिए यह एक चेतावनी है।

नई दिल्ली, २ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। एक नए शोध के अनुसार, फेफड़ों, आंतों, मुंह और त्वचा में संक्रमण का खतरा अधिक होता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान बोस इंस्टीट्यूट के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि घनी आबादी वाले इलाकों में संक्रमण फैलाने वाले एयरबोर्न बैक्टीरिया की संख्या कम भीड़-भाड़ वाले इलाकों की तुलना में दोगुनी होती है।

शोधकर्ताओं की एक टीम ने दिल्ली जैसे महानगरीय क्षेत्रों में वायुजनित रोगजनकों से उत्पन्न स्वास्थ्य जोखिमों का विश्लेषण किया। इसके निष्कर्ष 'एटमॉस्फेरिक एनवायरनमेंट: एक्स' शीर्षक वाली एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

इन परिणामों से पता चलता है कि वायुजनित रोगजनक बैक्टीरिया, जो आमतौर पर श्वसन, जठरांत्र संबंधी मार्ग (जीआईटी), मुंह और त्वचा के संक्रमणों के लिए जिम्मेदार होते हैं, घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म कणों पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता के कारण दोगुने होते हैं।

डॉ. सनत कुमार दास के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कहा, "पीएम 2.5-सूक्ष्म धूल के कण, बैक्टीरिया को शहर की हवा में फैलने में मदद करते हैं। चूंकि ये कण फेफड़ों में गहराई तक घुस सकते हैं, इसलिए ये रोगजनक बैक्टीरिया के वाहक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे संक्रमण शरीर के विभिन्न भागों में फैल जाता है।"

दिल्ली, दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है, जहां वायु प्रदूषण सबसे अधिक है। सर्दियों के दौरान पश्चिमी विक्षोभ के प्रवेश से वायुमंडलीय तापमान में अचानक गिरावट आती है। यह स्थिर हवा और कम सीमा परत की ऊंचाई के लिए जिम्मेदार होता है।

शोधकर्ताओं ने कहा, "सर्दियों की बारिश के दौरान वायुजनित रोगों के फैलने की संभावना अधिक होती है। इस अवधि में प्रदूषण और मौसम के मिजाज मिलकर सूक्ष्मजीवों को हवा में सामान्य से अधिक देर तक रहने की स्थिति पैदा करता है।"

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह नया अध्ययन "शहरी स्वास्थ्य नियोजन के लिए एक चेतावनी हो सकता है।"

उन्होंने कहा, "दिल्ली जैसे बड़े शहर, जहां लाखों लोग प्रतिदिन प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, इनके निवासी रोगवाहक जीवाणुओं के संपर्क में आ सकते हैं। मौसम, प्रदूषण, पर्यावरणीय कारक और जनसंख्या घनत्व इन वायुजनित जीवाणुओं और परिणामी रोग संचरण को कैसे प्रभावित करते हैं, इसे समझकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ बीमारी का बेहतर पूर्वानुमान लगा सकते हैं। साथ ही शहरी डिजाइन में सुधार करने और नागरिकों की सुरक्षा करने में मदद कर सकते हैं।

Point of View

यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि घनी आबादी वाले शहरों में स्वास्थ्य के लिए संभावित खतरों को कैसे पहचाना जा सकता है। वायु प्रदूषण और संक्रमण के बीच के संबंध को समझकर, हम नागरिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं और शहरी स्वास्थ्य नियोजन में सुधार कर सकते हैं।
NationPress
02/09/2025

Frequently Asked Questions

क्या घनी आबादी वाले शहरों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है?
हाँ, अध्ययन के अनुसार, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में एयरबोर्न बैक्टीरिया की संख्या कम भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों की तुलना में दोगुनी होती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
पीएम 2.5 का क्या प्रभाव है?
पीएम 2.5 सूक्ष्म धूल के कण होते हैं, जो बैक्टीरिया को हवा में फैलने में मदद करते हैं और फेफड़ों में घुसकर रोगजनक बैक्टीरिया के वाहक का कार्य करते हैं।
क्या सर्दियों में वायुजनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है?
हाँ, सर्दियों में वायुजनित रोगों के फैलने की संभावना अधिक होती है, विशेषकर जब प्रदूषण और मौसम का मिजाज मिलकर सूक्ष्मजीवों को हवा में अधिक देर तक रहने की स्थिति पैदा करता है।