क्या छिपे आनुवंशिक जोखिम के कारण पुरुषों में मधुमेह का निदान करने में देरी हो रही है?

सारांश
Key Takeaways
- जी6पीडी की कमी एक आम आनुवंशिक स्थिति है।
- यह पुरुषों में मधुमेह के निदान में देरी कर सकती है।
- इससे जटिलताओं का जोखिम बढ़ता है।
- एचबीए1सी परीक्षण सटीक नहीं हो सकता है।
- नए निदान विधियों की जरूरत है।
नई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। एक नए अध्ययन के अनुसार, एक सामान्य जीन वैरिएंट दुनिया भर में लाखों पुरुषों में टाइप 2 मधुमेह के निदान में देरी कर सकता है और गंभीर जटिलताओं के जोखिम को बढ़ा सकता है।
जी6पीडी की कमी एक आनुवंशिक स्थिति है जो वैश्विक स्तर पर 40 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित करती है, विशेषकर अफ्रीकी, एशियाई, मध्य पूर्वी और भूमध्यसागरीय पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों में।
यह स्थिति पुरुषों में अधिक प्रचलित है और सामान्यतः इसका पता नहीं चल पाता क्योंकि यह बहुत कम लक्षण उत्पन्न करती है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) उन आबादी में जी6पीडी की कमी के लिए नियमित जांच की सिफारिश करता है, जहां यह अधिक आम है, लेकिन कई अन्य देशों में इसे स्वीकार नहीं किया गया है।
एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन (क्यूएमयूएल) के सहयोग से पाया कि जी6पीडी की कमी वाले पुरुषों में, जीन वैरिएंट के बिना वाले पुरुषों की तुलना में टाइप 2 मधुमेह का निदान औसतन चार साल बाद होता है। इसके बावजूद, 50 में से एक से भी कम लोगों में इस स्थिति का निदान हुआ है।
डायबिटीज केयर पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि जी6पीडी की कमी वाले पुरुषों में मधुमेह से संबंधित छोटी रक्त वाहिकाओं की समस्याओं, जैसे कि आंख, गुर्दे और तंत्रिका क्षति, विकसित होने का जोखिम अन्य मधुमेह रोगियों की तुलना में 37 प्रतिशत अधिक होता है।
जी6पीडी की कमी से मधुमेह नहीं होता, लेकिन यह एक सामान्य खून की जांच, जिसे एचबीए1सी कहा जाता है, में गड़बड़ी उत्पन्न कर देती है। यह जांच मधुमेह की पहचान और निगरानी के लिए प्रयोग की जाती है। जी6पीडी की कमी के कारण, एचबीए1सी जांच का परिणाम गलत तरीके से कम आता है।
चूंकि इससे डॉक्टर और मरीज भ्रमित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मधुमेह के निदान और उपचार में देरी हो सकती है, इसलिए टीम ने नए निदान विधियों को विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि गंभीर जटिलताओं को रोकने के लिए समय रहते उपाय किए जा सकें।
एक्सेटर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर इनेस बरोसो ने कहा, "हमारे निष्कर्ष स्वास्थ्य असमानताओं से निपटने के लिए परीक्षण प्रथाओं में बदलाव की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि जी6पीडी की कमी वाले लोगों के लिए एचबीए1सी परीक्षण सटीक नहीं हो सकता है और नियमित जी6पीडी जांच जोखिम वाले लोगों की पहचान करने में मदद कर सकती है। इस मुद्दे का समाधान न केवल चिकित्सा के लिए, बल्कि स्वास्थ्य समानता के लिए भी महत्वपूर्ण है।"
एचबीए1सी रक्त परीक्षण टाइप 2 मधुमेह के प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक है और इसका उपयोग दुनिया भर के 136 देशों में मधुमेह के निदान के लिए किया जाता है।
हालांकि, जी6पीडी की कमी वाले लोगों के लिए, यह परीक्षण उनके रक्त शर्करा के स्तर को कम आंक सकता है, जिससे चिकित्सा में काफी देरी हो सकती है और गंभीर जटिलताओं का खतरा बढ़ सकता है।
-- राष्ट्र प्रेस
कनक/एएस