क्या पार्किंसंस मरीजों के लिए नया इंजेक्शन रोजाना दवा लेने का बोझ खत्म करेगा?

सारांश
Key Takeaways
- पार्किंसंस के मरीजों के लिए नया इंजेक्शन हफ्ते में एक बार लिया जाएगा।
- यह दवा रोजाना दवा लेने की जरूरत को खत्म करती है।
- 80 लाख लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने की क्षमता।
- बुजुर्गों और दवा निगलने में कठिनाई रखने वालों के लिए आसान।
- दवा में लेवोडोपा और कार्बिडोपा शामिल हैं।
नई दिल्ली, 12 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पार्किंसंस बीमारी से प्रभावित व्यक्तियों के लिए एक नई दवा विकसित की है। यह दवा हफ्ते में एक बार इंजेक्शन के रूप में ली जाती है। इस नवोन्मेषी दवा से लगभग 80 लाख लोगों की जिंदगी में बदलाव आ सकता है, क्योंकि इससे मरीजों को प्रतिदिन अनेक गोलियां लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
बार-बार दवा लेना बुजुर्गों या उन लोगों के लिए कठिन होता है, जिन्हें दवा निगलने में समस्या होती है। समय पर दवा न लेने पर न केवल दवा का प्रभाव कम हो जाता है, बल्कि इसके साइड इफेक्ट्स भी बढ़ जाते हैं, जिससे बीमारी का नियंत्रण मुश्किल हो जाता है।
इस समस्या का समाधान करने के लिए, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय (यूनिसा) की टीम ने एक ऐसी इंजेक्शन वाली दवा तैयार की है जो लंबे समय तक प्रभावी रहती है। इस दवा में पार्किंसंस की दो प्रमुख दवाएं, लेवोडोपा और कार्बिडोपा, शामिल हैं। यह दवा पूरे हफ्ते प्रभावी रहती है।
ड्रग डिलीवरी एंड ट्रांसलेशनल रिसर्च पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, यह दवा विशेष प्रकार की होती है, जिसे बायोडिग्रेडेबल कहा जाता है। इसे इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है और यह धीरे-धीरे सात दिनों तक शरीर में प्रभाव डालती है।
यूनिसा के फार्मास्यूटिकल इनोवेशन सेंटर के प्रोफेसर संजय गर्ग ने कहा है कि यह नई इंजेक्शन वाली दवा उपचार के परिणामों को सुधार सकती है। इससे मरीजों के लिए दवा लेना भी सरल हो जाएगा। साथ ही, बीमारी की प्रगति को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
प्रोफेसर गर्ग ने कहा, "हमारा उद्देश्य ऐसी दवा बनाना था जो इलाज को सरल बनाए। मरीज सही तरीके से दवा लें और इसका प्रभाव निरंतर बना रहे। यह हफ्ते में एक बार लगने वाला इंजेक्शन पार्किंसंस की देखभाल में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।"
उन्होंने आगे कहा, "लेवोडोपा पार्किंसंस की सबसे प्रभावी दवा है, लेकिन इसका प्रभाव जल्दी समाप्त हो जाता है, जिससे इसे दिन में कई बार लेना पड़ता है। लेकिन यह इंजेक्शन एक जेल के रूप में है, जिसमें दो विशेष तत्व हैं, पहला पीएलजीए, जो शरीर में धीरे-धीरे घुलता है, और दूसरा यूड्रैगिट एल-100, जो पीएच के अनुसार काम करता है और दवा को सही समय पर छोड़ता है।"
गर्ग ने कहा, "इस दवा को पतली 22-गेज सुई से इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। इससे मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं होती और किसी भी सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती।"
उन्होंने कहा कि यह तकनीक केवल पार्किंसंस के लिए ही नहीं, बल्कि कैंसर, डायबिटीज, मस्तिष्क संबंधी बीमारियों, दर्द निवारण और दीर्घकालिक संक्रमण जैसी अन्य गंभीर बीमारियों के उपचार में भी सहायक हो सकती है।