क्या छोटे बच्चों के लिए काली खांसी जानलेवा हो सकती है, गर्भावस्था में टीका लगवाना क्यों जरूरी है?

सारांश
Key Takeaways
- गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण नवजात शिशुओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
- काली खांसी की पहचान और उपचार समय पर करना बहुत महत्वपूर्ण है।
- बच्चों में यह बीमारी वयस्कों की तुलना में अलग तरीके से प्रकट होती है।
- काली खांसी के लक्षणों में खांसी और सांस लेने में रुकावट शामिल है।
- समय पर चिकित्सा से संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है।
नई दिल्ली, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। एक नई अध्ययन के अनुसार, छोटे बच्चों के लिए काली खांसी अत्यंत जानलेवा हो सकती है। इस शोध में गर्भावस्था के दौरान माताओं के टीकाकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस बीमारी का सबसे बड़ा खतरा यह है कि यह तेजी से फैलती है और बच्चों में इसके लक्षण वयस्कों से भिन्न होते हैं, जिससे सही समय पर पहचान और उपचार करना मुश्किल हो जाता है।
काली खांसी एक सांस संबंधित बीमारी है, जो बैक्टीरिया के कारण होती है। इसके कारण मरीज को तेज और लगातार खांसी होती है। खांसी के बाद सांस लेते समय जो 'हूप' की आवाज आती है, वह इस बीमारी की पहचान मानी जाती है। यह खांसी कुछ मामलों में महीनों तक बनी रह सकती है, जिससे बच्चे और बड़े दोनों को काफी कठिनाई होती है। लेकिन बच्चों में यह बीमारी भिन्न तरीके से प्रकट होती है, इसलिए इसे समझना और समय पर उपचार कराना बेहद महत्वपूर्ण है।
शिकागो के एन एंड रॉबर्ट एच. लूरी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल में संक्रामक रोग विशेषज्ञ और प्रमुख लेखिका कैटलिन ली ने कहा, "छोटे बच्चों में काली खांसी के लक्षण वयस्कों से भिन्न होते हैं।"
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी फीनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन में बाल रोग की सहायक प्रोफेसर ली ने बताया, "बच्चों को 'हूप' वाली खांसी नहीं होती, बल्कि सांस लेने में रुकावट (एपनिया) हो सकती है। इससे बच्चे की जान को खतरा बढ़ जाता है क्योंकि वे सही तरीके से सांस नहीं ले पाते। इसके साथ ही, खांसी के कारण उनके शरीर में सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या अत्यधिक बढ़ सकती है, जिसे डॉक्टर कभी-कभी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी समझ लेते हैं। इस स्थिति में सही निदान और त्वरित उपचार अत्यंत आवश्यक होता है।"
पीडियाट्रिक्स पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में शोधकर्ताओं ने इस बीमारी से बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण पर विशेष जोर दिया है।
ली ने कहा, "जब गर्भवती महिलाएं खांसी से सुरक्षा का टीका लगवाती हैं, तो उनका शरीर उस बीमारी से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनाता है, जो बच्चे को जन्म से पहले ही सुरक्षा प्रदान करता है। इससे नवजात शिशु इस जानलेवा बीमारी से सुरक्षित रहते हैं।"
अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के निर्देशों के अनुसार, बच्चों को यह टीका 2, 4, 6, 15-18 महीने और फिर 4-6 साल की उम्र में दिया जाता है। इसके अलावा, 11-12 साल की उम्र में बूस्टर डोज लेना आवश्यक है और यदि किसी बच्चे ने यह टीका नहीं लिया हो, तो 18 साल की उम्र तक इसे लगवाया जा सकता है।
गर्भवती महिलाओं को 27 से 36 हफ्ते के बीच टीका लगवाना चाहिए, ताकि बच्चे को जन्म से पहले इस बीमारी से बचाने में मदद मिल सके।
यदि किसी व्यक्ति में काली खांसी की पुष्टि हो जाती है या संदिग्ध मामला लगता है, तो उसे तुरंत एंटीबायोटिक लेना चाहिए। जल्दी उपचार शुरू करने से लक्षणों में कमी आ सकती है और बीमारी फैलने से रोकी जा सकती है। हालांकि, देर से उपचार शुरू करने पर लक्षणों पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन यह संक्रमण को दूसरों तक पहुंचने से अवश्य रोकता है।