क्या सुबह चार बजे उठकर दौड़ना और अखाड़े में घंटों पसीना बहाना ही बबीता फोगाट को धाकड़ पहलवान बनाता है?

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क्या सुबह चार बजे उठकर दौड़ना और अखाड़े में घंटों पसीना बहाना ही बबीता फोगाट को धाकड़ पहलवान बनाता है?

सारांश

क्या आपको पता है कि बबीता फोगाट ने अपने कठिन परिश्रम और अनुशासन से भारतीय कुश्ती में एक नई पहचान बनाई है? जानिए उनकी प्रेरणादायक यात्रा और कैसे उन्होंने अपने पिता की मदद से कुश्ती में सफलता पाई।

Key Takeaways

  1. बबीता फोगाट ने अपने पिता के मार्गदर्शन में कुश्ती में सफलता पाई।
  2. उन्होंने 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
  3. बबीता का संघर्ष और मेहनत लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है।
  4. वह राजनीति में भी सक्रिय हैं और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करती हैं।
  5. उनकी कहानी यह दर्शाती है कि मेहनत से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

नई दिल्ली, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश में कुश्ती को पारंपरिक रूप से पुरुषों का खेल माना जाता रहा है। हालांकि, पिछले एक दशक में कुश्ती की परिभाषा में बदलाव आया है। अब, देश के प्रमुख पहलवानों में पुरुषों के साथ-साथ फोगाट बहनों का नाम भी शामिल है। इनमें बबीता फोगाट का नाम विशेष महत्व रखता है, जिन्होंने अपनी कुश्ती के माध्यम से वैश्विक स्तर पर देश का नाम रोशन किया है।

बबीता फोगाट का जन्म 20 नवंबर 1989 को हरियाणा के भिवानी जिले के छोटे से गाँव बालाली में हुआ था। उनके पिता महावीर सिंह फोगाट खुद एक पहलवान रहे हैं। बबीता और उनकी बहनों की कुश्ती में सफलता में उनके पिता का अहम योगदान रहा है। महावीर सिंह ने उस समय अपनी बेटियों को ट्रेनिंग दी जब हरियाणा में लड़कियों की कुश्ती बेहद चुनौतीपूर्ण थी। समाज की बाधाओं को तोड़ते हुए उन्होंने अपनी बेटियों को कुश्ती में पारंगत किया। बबीता और उनकी बहनों संगीता फोगाट, गीता फोगाट और विनेश फोगाट ने कड़ी मेहनत से अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। विनेश, बबीता की चचेरी बहन हैं।

विशेष रूप से बबीता की बात करें, तो उन्हें बचपन से ही कठिन अभ्यास की आदत डालनी पड़ी। सुबह चार बजे उठकर दौड़ना, मिट्टी के अखाड़े में घंटों पसीना बहाना, बबीता की दिनचर्या का हिस्सा बन गया। कहा जाता है कि सोना जितना तपता है उतना ही चमकता है। बबीता फोगाट का करियर भी उसी तरह चमका और वह देश की लाखों महिला पहलवानों के लिए प्रेरणा बन गईं।

बबीता ने मात्र 17 साल की उम्र में 2006 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतकर पहली बार सुर्खियां बटोरीं। 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने 51 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता। 2014 के ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में बबीता ने 55 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में स्वर्ण पदक जीता, और वह कॉमनवेल्थ में कुश्ती में गोल्ड जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला पहलवान बनीं। उनसे पहले उनकी बड़ी बहन गीता फोगाट ने 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड जीता था।

बबीता ने 2012 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य, 2013 में रजत और 2018 में भी कांस्य पदक जीते। 2016 में रियो ओलंपिक में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन पहले दौर से बाहर हो गईं।

पहलवानी से संन्यास के बाद, बबीता अब राजनीति में सक्रिय हैं। वह राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार प्रखरता से व्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं।

Point of View

तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती। उनकी मेहनत और संघर्ष ने न केवल उन्हें एक सफल पहलवान बनाया, बल्कि उन्होंने समाज के लिए भी एक मिसाल कायम की है। यह न केवल महिलाओं के लिए प्रेरणा है, बल्कि पूरे देश के लिए गहरी सोचने की बात है।
NationPress
19/11/2025

Frequently Asked Questions

बबीता फोगाट ने कब कुश्ती में सफलता प्राप्त की?
बबीता ने 2006 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतकर अपने करियर की शुरुआत की।
बबीता फोगाट का जन्म कब हुआ?
बबीता फोगाट का जन्म 20 नवंबर 1989 को हुआ।
बबीता ने कितने ओलंपिक में भाग लिया?
बबीता ने 2016 रियो ओलंपिक में भाग लिया था।
क्या बबीता फोगाट राजनीति में सक्रिय हैं?
हाँ, बबीता ने पहलवानी से संन्यास के बाद राजनीति में कदम रखा है।
बबीता की बहनों के नाम क्या हैं?
बबीता की बहनों के नाम संगीता, गीता और विनेश फोगाट हैं।
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