क्या मुरलीकांत पेटकर ने भारत-पाक युद्ध में घायल होकर पैरालंपिक में इतिहास रचा?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- मुरलीकांत पेटकर का साहस और संघर्ष प्रेरणादायक है।
- उन्होंने पैरालंपिक में भारत का नाम रोशन किया।
- तैराकी उनकी जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
- सैनिक के रूप में उनकी बहादुरी अद्वितीय थी।
- उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के पहले पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्ट मुरलीकांत पेटकर ने 1972 के हीडलबर्ग पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर एक नया इतिहास लिखा। भारतीय सेना के पूर्व सैनिक ने अपनी बहादुरी और संघर्ष से देश का नाम रोशन किया और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बने। मुरलीकांत ही 'चंदू चैंपियन' फिल्म के असली नायक हैं।
1 नवंबर 1944 को महाराष्ट्र के पेठ इस्लामपुर में जन्मे मुरलीकांत पेटकर भारतीय सेना के एक साहसी जवान थे। सेना में भर्ती होने से पहले उन्होंने एक मुक्केबाज के रूप में भी पहचान बनाई थी और 1965 में राष्ट्रीय मुक्केबाजी खिताब भी जीता। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने निडरता से लड़ाई लड़ी।
इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) कोर में क्राफ्ट्समैन रैंक के सैनिक मुरलीकांत उस समय कश्मीर में तैनात थे। एक दिन, उन्हें एक सीटी की आवाज सुनाई दी, जिसे सभी ने टी-ब्रेक का संकेत समझा, लेकिन यह तो हवाई हमले का अलर्ट था।
भारी गोलीबारी के बीच मुरलीकांत भी घायल हो गए और एक गोली उनकी रीढ़ की हड्डी में लगी। इसके बाद वह चट्टान से गिर गए और एक आर्मी टैंकर उनके ऊपर से गुजरा। इसके बाद उन्हें होश नहीं रहा।
वह युद्ध में गंभीर रूप से जख्मी हो गए और 18 महीने तक कोमा में रहे। जब होश आया, तो पता चला कि वह पैरालाइज्ड हो गए हैं और उनकी याददाश्त भी चली गई थी।
एक दिन मुरलीकांत ने बिस्तर से उठने की कोशिश की, लेकिन गिर गए। जब लोग उन्हें उठाने आए, तो उन्हें वह दिन याद आ गया जब वह युद्ध के दौरान पहाड़ी से गिरे थे। धीरे-धीरे मुरलीकांत को सब कुछ याद आ गया।
कुछ समय बाद सेना के फिजियोथेरेपिस्ट ने उन्हें तैराकी की सलाह दी, जो उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। यही तैराकी उन्हें पैरालंपिक तक ले गई।
मुरलीकांत ने 1968 के पैरालिंपिक खेलों में भाग लिया और भाला फेंक के फाइनल में पहुंचे। इसके बाद 1970 में स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में हुए कॉमनवेल्थ पैराप्लेजिक गेम्स में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता।
1972 में मुरलीकांत पेटकर ने जर्मनी के हीडलबर्ग में 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में भारत को पहला पैरालंपिक गोल्ड मेडल दिलाया। उन्होंने 37.33 सेकंड में यह रिकॉर्ड स्थापित किया।
साल 2018 में मुरलीकांत पेटकर को 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया और इसके बाद 2024 में उन्हें 'अर्जुन अवॉर्ड' से नवाजा गया।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                             
                             
                            