क्या विश्वनाथन आनंद, 'मद्रास का शेर', ने भारतीय शतरंज में क्रांति ला दी?
सारांश
Key Takeaways
- विश्वनाथन आनंद का जन्म 11 दिसंबर 1969 को हुआ था।
- उन्होंने 1988 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बनने का गौरव हासिल किया।
- उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने उन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।
- आनंद ने कई बार शतरंज ऑस्कर जीते हैं।
- वे नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा बने हैं।
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। शतरंज की दुनिया में भारत का नाम रोशन करने वाले विश्वनाथन आनंद को 'मद्रास का शेर' कहा जाता है। वह एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने भारतीय शतरंज में क्रांति ला दी। वैश्विक स्तर पर अमिट छाप छोड़ने वाले विश्वनाथन आनंद ने अपनी प्रतिभा और लगन के साथ दुनिया के चुनिंदा लोगों के बीच अपना वर्चस्व स्थापित किया है।
11 दिसंबर 1969 को तमिलनाडु के मयिलादुथुराई (तत्कालीन मद्रास) में जन्मे आनंद को बचपन से ही शतरंज में रुचि थी। विश्वनाथन आनंद बेहद तेज दिमाग के बच्चे थे। उनकी मां सुशीला ने बेटे की प्रतिभा को पहचान लिया था और उन्हें शतरंज से परिचित कराया। महज 6 साल की उम्र में ही विश्वनाथन आनंद बड़े बच्चों को इस खेल में मात देने लगे थे।
विश्वनाथन आनंद के पिता को फिलीपींस में जॉब का ऑफर मिला, और माता-पिता के साथ 8 साल की उम्र में आनंद मनीला पहुंचे, जहां उन्होंने इस खेल के गुर सीखे। इस समय शतरंज में रूस और यूरोप के खिलाड़ियों का दबदबा था।
महज 14 साल की उम्र में, विश्वनाथन आनंद ने सब-जूनियर शतरंज चैंपियनशिप जीती। 15 साल की उम्र में उन्होंने सबसे कम उम्र के अंतरराष्ट्रीय मास्टर बनने का गौरव हासिल किया, जिसके कारण उन्हें 'लाइटनिंग किड' का उपनाम मिला।
1985 में, विश्वनाथन आनंद को 'अर्जुन अवॉर्ड' से नवाजा गया। 1988 में, वह देश के पहले ग्रैंडमास्टर बने। यह पूरे देश के लिए गर्व का विषय था। उनकी इस उपलब्धि ने लाखों युवाओं को शतरंज से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। उसी वर्ष उन्हें 'पद्मश्री अवॉर्ड' से भी सम्मानित किया गया।
1995 में, विश्वनाथन आनंद ने गैरी कास्पारोव के खिलाफ अपना पहला विश्व शतरंज चैंपियनशिप मैच खेला। न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की 107वीं मंजिल पर खेले गए इस मैच में भले ही आनंद जीत नहीं सके, लेकिन उन्होंने विश्व में अपनी पहचान बना ली थी। 1997, 1998, 2003, 2004 और 2008 में, आनंद ने शतरंज ऑस्कर जीते।
2000 में, आनंद ने तेहरान में आयोजित फिडे विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीती। इसके बाद 2007, 2008, 2010 और 2012 में, आनंद ने इस खेल में अपनी बादशाहत कायम रखी और वह 21 महीनों तक वर्ल्ड नंबर-1 रहे।
विश्वनाथन आनंद ने अपनी कड़ी मेहनत, विनम्रता, निरंतरता और समर्पण के साथ एक मिसाल पेश की है। उन्होंने प्रज्ञानंद और गुकेश जैसी नई पीढ़ी को प्रेरित किया है, जिन्होंने आनंद के बाद इस खेल में देश का नाम रोशन किया है।