क्या 13 सितंबर को विश्वनाथन आनंद ने फिडे शतरंज विश्व कप जीतकर इतिहास रचा?

सारांश
Key Takeaways
- 13 सितंबर को आनंद ने फिडे विश्व कप जीता।
- आनंद को 50,000 डॉलर का पुरस्कार मिला।
- उन्होंने 1987 में जूनियर वर्ल्ड कप जीता।
- आनंद को कई पुरस्कार मिले हैं।
- बच्चपन से ही शतरंज का माहौल मिला।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय खेल जगत के लिए 13 सितंबर का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2000 में इसी दिन भारत के ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद ने अपना पहला फिडे शतरंज विश्व कप जीतकर इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।
इस प्रतियोगिता का आयोजन चीन के शेनयांग में किया गया था, जिसमें 24 खिलाड़ियों ने भाग लिया। 13 सितंबर को खिताबी मुकाबला खेला गया, जहाँ आनंद ने स्पेन के अलेक्सी शिरोव को मात देकर खिताब अपने नाम किया।
इस जीत के साथ आनंद ने न केवल खिताब बल्कि 50,000 डॉलर
यह जीत आनंद की अंतरराष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के साथ ही भारत में शतरंज की लोकप्रियता को भी बढ़ावा दिया। चेस टाइगर के नाम से मशहूर आनंद की यह उपलब्धि उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जाती है।
11 दिसंबर 1969 को मयिलादुथुराई में जन्मे आनंद को शतरंज का खेल पारिवारिक विरासत के रूप में मिला। उनकी माँ सुशीला भी एक बेहतरीन शतरंज खिलाड़ी थीं। आनंद के बड़े भाई-बहन भी खेल में रुचि रखते थे, जिससे परिवार में शतरंज का माहौल बना रहा।
आनंद के पिता विश्वनाथन कृष्णमूर्ति को फिलीपींस में नौकरी का प्रस्ताव मिला, जिसके बाद 8 साल की उम्र में आनंद भी मनीला चले गए और वहीं शतरंज खेलना शुरू किया। आनंद ने जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना शुरू किया, तब रूस और यूरोपीय खिलाड़ियों का दबदबा था। 1987 में वह जूनियर वर्ल्ड कप जीतने वाले पहले एशियन बने।
आनंद ने 2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में विश्व चैंपियन बनकर इस खेल में अपनी बादशाहत साबित की। वह 21 महीनों तक विश्व के नंबर-1 खिलाड़ी रहे। उन्होंने 1997, 1998, 2003, 2004, 2007 और 2008 में शतरंज ऑस्कर भी जीते।
आनंद को 1985 में 'अर्जुन अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया। 1988 में वह भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने और उसी वर्ष उन्हें 'पद्मश्री' से नवाजा गया। उस समय उनकी उम्र केवल 18 साल थी।
वर्ष 2001 में उन्हें 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया और 2008 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से नवाजा गया।