क्या 20 अगस्त को कोलकाता में आधुनिक भारत की शुरुआत हुई?

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क्या 20 अगस्त को कोलकाता में आधुनिक भारत की शुरुआत हुई?

सारांश

जाने कैसे 20 अगस्त 1828 को कोलकाता में ब्रह्म समाज की स्थापना ने भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधारों की एक नई धारा शुरू की। राजा राममोहन राय के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन ने 19वीं सदी के भारत के बंधनों को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Key Takeaways

  • 20 अगस्त 1828 को ब्रह्म समाज की स्थापना हुई।
  • राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का जनक माना जाता है।
  • ब्रह्म समाज ने सामाजिक समानता और स्त्री अधिकारों पर जोर दिया।
  • यह आंदोलन अंधविश्वास और मूर्तिपूजा के खिलाफ था।
  • ब्रह्म समाज का योगदान आज भी प्रासंगिक है।

नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय इतिहास में 20 अगस्त 1828 की तिथि उन महत्वपूर्ण पन्नों में दर्ज है, जहाँ से सामाजिक और धार्मिक सुधारों की एक नई लहर शुरू हुई। कोलकाता में इसी दिन राजा राममोहन राय की दूरदर्शी पहल पर ‘ब्रह्म समाज’ का पहला अधिवेशन हुआ। यह केवल एक सभा नहीं थी, बल्कि एक ऐसी क्रांति की शुरुआत थी जिसने 19वीं सदी के भारत के बंधनों को चुनौती दी और आधुनिक भारत की नींव रखी।

राजा राममोहन राय को हम आज ‘आधुनिक भारत का जनक’ और ‘भारतीय पुनर्जागरण के जनक’ के रूप में जानते हैं। उन्होंने उस समय आवाज उठाई, जब समाज सती प्रथा, बाल विवाह, जातिगत ऊंच-नीच और महिलाओं पर अनेक सामाजिक बंधनों से जकड़ा हुआ था।

उनकी सोच और साहसिक कदमों ने न केवल सती प्रथा के उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि भारतीय समाज को तार्किकता और शिक्षा की दिशा में मोड़ा। ब्रह्म समाज की स्थापना वास्तव में एक एकेश्वरवादी आंदोलन था, जिसने मूर्ति पूजा, अंधविश्वास और कर्मकांडों को अस्वीकार कर एक सर्वोच्च ईश्वर की उपासना पर बल दिया। यह आंदोलन केवल धार्मिक सुधार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सामाजिक समानता, जाति-विहीन समाज और महिलाओं की शिक्षा व अधिकारों के लिए भी खड़ा हुआ।

इस आंदोलन में द्वारकानाथ टैगोर जैसे प्रगतिशील व्यक्तियों का सहयोग भी रहा। बाद में हेमेंद्रनाथ टैगोर ने 1860 में ब्रह्मो अनुस्ठान प्रकाशित किया, जिसने इसे हिंदू धर्म से औपचारिक रूप से अलग पहचान दी। ब्रह्म समाज ने बंगाल में एक बौद्धिक और सामाजिक पुनर्जागरण की नींव डाली। इस आंदोलन ने जातिवाद और कुलीन ब्राह्मणवाद को सीधी चुनौती दी। यही वह दौर था जब शिक्षा, तर्क और सामाजिक न्याय को धार्मिक कर्मकांडों से ऊपर रखा जाने लगा।

यद्यपि मतभेदों के कारण ब्रह्म समाज बाद में कई हिस्सों में बंट गया- आदि ब्रह्म समाज, भारतीय ब्रह्म समाज और साधारण ब्रह्म समाज- लेकिन इसके मूल सिद्धांत कभी नहीं मरे। एकेश्वरवाद, मानव समानता, स्त्री अधिकार, शिक्षा और अंधविश्वास का विरोध आज भी इसे प्रासंगिक बनाए रखते हैं।

राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज की विरासत आज भी उतनी ही जीवंत है। उन्होंने जो राह दिखाई, उसी पर चलकर भारत ने सामाजिक सुधार, शिक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाया। उनके प्रयासों ने ही आने वाली पीढ़ियों को यह समझाया कि धर्म का सार तर्क, आस्था और मानवता है, न कि अंधविश्वास और रूढ़िवादिता।

Point of View

यह स्पष्ट है कि राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज ने भारतीय समाज में एक नई दिशा दी। उनके प्रयासों ने न केवल धार्मिक सुधारों को जन्म दिया, बल्कि सामाजिक समानता और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी एक मजबूत मंच प्रदान किया। आज भी उनकी विरासत हमारे समाज में महत्वपूर्ण है।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुई?
ब्रह्म समाज की स्थापना 20 अगस्त 1828 को कोलकाता में हुई।
राजा राममोहन राय को क्यों जाना जाता है?
राजा राममोहन राय को ‘आधुनिक भारत का जनक’ और ‘भारतीय पुनर्जागरण के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
ब्रह्म समाज के मुख्य सिद्धांत क्या हैं?
ब्रह्म समाज के मुख्य सिद्धांतों में एकेश्वरवाद, मानव समानता, स्त्री अधिकार और अंधविश्वास का विरोध शामिल हैं।
राजा राममोहन राय ने किस सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाई?
राजा राममोहन राय ने सती प्रथा और बाल विवाह जैसे सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।
ब्रह्म समाज का उद्देश्य क्या था?
ब्रह्म समाज का उद्देश्य सामाजिक सुधार, जाति-विहीन समाज और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था।