क्या बारामूला में हजरत सैयद जांबाज वली का 607वां उर्स श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है?

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क्या बारामूला में हजरत सैयद जांबाज वली का 607वां उर्स श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है?

सारांश

खानपोरा, बारामूला में हजरत सैयद जांबाज वली के 607वें उर्स का आयोजन हो रहा है, जहां हजारों श्रद्धालु शांति और समृद्धि की दुआ मांगने के लिए एकत्रित हुए हैं। इस बार का उर्स धार्मिक सहिष्णुता और प्रेम का संदेश फैलाता है।

Key Takeaways

  • हजरत सैयद जांबाज वली का उर्स धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।
  • यह आयोजन कश्मीर में सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देता है।
  • हजारों श्रद्धालु इस पवित्र अवसर पर एकजुट होते हैं।
  • उर्स में फज्र की नमाज और तबर्रुकत का वितरण होता है।
  • हजरत सैयद जांबाज वली की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं।

बारामूला, 19 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कश्मीर के प्रसिद्ध सूफी संत हजरत सैयद जांबाज वली (रहमतुल्लाहि अलैह) का 607वां सालाना उर्स खानपोरा, बारामूला में श्रद्धा और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर कश्मीर घाटी के विभिन्न हिस्सों से हजारों श्रद्धालु उनकी पवित्र दरगाह पर पहुंच रहे हैं, जहां बुजुर्गों, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने फज्र की नमाज के बाद पवित्र अवशेषों के दर्शन किए और पूरी दुनिया में शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना की।

स्थानीय वक्फ अध्यक्ष ने बताया, "हम संत हजरत सैयद जांबाज वली का 607वां उर्स बहुत श्रद्धा से मना रहे हैं। बारामूला के अलावा घाटी के अन्य हिस्सों से भी हजारों श्रद्धालु उर्स में शामिल हुए और सूफी संत की इस पवित्र दरगाह पर अल्लाह की कृपा पाने के लिए दुआ की।"

उन्होंने कहा कि सदियों से बारामूला के खानपुरा में हजरत सैयद जांबाज वली की दरगाह इस्लामी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक रही है। पिछली रात शबदारी की रस्म पूरी की गई और उसके बाद शुक्रवार के लिए तबर्रुकत तैयार किए गए। फज्र की नमाज के बाद हमने तबर्रुकत का वितरण किया।

एक स्थानीय निवासी ने बताया कि हजरत सैयद जांबाज वली ने हमें धार्मिक सहिष्णुता, न्याय, समानता और इस्लाम की शिक्षाएं सिखाईं। उन्हें महान सूफी विद्वानों में से एक माना जाता है जो लगभग 600 साल पहले ईरान से कश्मीर आए थे।

उनका मुख्य उद्देश्य शांति, प्रेम और मानवता का संदेश फैलाना था। इतिहासकारों के अनुसार, हजरत सैयद जांबाज वली ने खानपोरा, बारामूला को अपने मिशन का केंद्र बनाया, जहां उनकी दरगाह भी बनी।

सूफी संत हजरत सैयद जांबाज वली एक महान सूफी संत थे, जो लगभग 600 साल पहले ईरान के इस्फहान से कश्मीर आए थे। उन्होंने शांति, प्रेम और मानवता का संदेश फैलाया और हजारों उत्पीड़ित लोगों के दिलों को प्रेम व अपनी सेवा से जीता। उनकी दरगाह कश्मीर के बारामूला जिले के खानपोरा में स्थित है, जहां हर साल उनका उर्स मनाया जाता है।

Point of View

बल्कि यह कश्मीर की सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता का भी परिचायक है। हजरत सैयद जांबाज वली के उर्स ने हमेशा से लोगों को एकजुट किया है और इस बार भी यह संदेश फैलाने का कार्य कर रहा है।
NationPress
19/09/2025

Frequently Asked Questions

हजरत सैयद जांबाज वली कौन हैं?
हजरत सैयद जांबाज वली एक प्रसिद्ध सूफी संत हैं, जिन्होंने लगभग 600 साल पहले ईरान से कश्मीर में आकर शांति और प्रेम का संदेश फैलाया।
उर्स का आयोजन कब होता है?
हजरत सैयद जांबाज वली का उर्स हर साल 19 सितंबर को मनाया जाता है।
इस बार के उर्स में कितने लोग शामिल हो रहे हैं?
इस साल के उर्स में हजारों श्रद्धालु कश्मीर घाटी के विभिन्न हिस्सों से शामिल हो रहे हैं।
उर्स में क्या विशेष गतिविधियाँ होती हैं?
उर्स के दौरान श्रद्धालु नमाज पढ़ते हैं, पवित्र अवशेषों के दर्शन करते हैं और शांति एवं समृद्धि के लिए दुआ करते हैं।
हजरत सैयद जांबाज वली का संदेश क्या था?
उनका मुख्य उद्देश्य शांति, प्रेम और मानवता का संदेश फैलाना था।