क्या कभी नहीं झुका शेर-ए-बिहार, भागवत झा आजाद ने सिद्धांतों से सियासत में रचा इतिहास?

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क्या कभी नहीं झुका शेर-ए-बिहार, भागवत झा आजाद ने सिद्धांतों से सियासत में रचा इतिहास?

सारांश

भागवत झा आजाद, जिन्हें 'शेर-ए-बिहार' कहा जाता है, ने भारतीय राजनीति में सिद्धांतों से भरा इतिहास रचा। उनकी साहसिकता और संघर्ष की कहानी आज भी युवाओं को प्रेरित करती है। जानिए उनके अद्वितीय सफर के बारे में।

Key Takeaways

  • भागवत झा आजाद का जीवन संघर्ष और समर्पण की कहानी है।
  • वे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता थे।
  • उनका योगदान बिहार की राजनीति में अविस्मरणीय है।
  • उन्होंने 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
  • उनका निजी जीवन भी प्रेरणादायक था, जिसमें उनके पुत्र कीर्ति आजाद का क्रिकेट करियर शामिल है।

पटना, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय राजनीति के इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जो न केवल अपनी पार्टी के लिए बल्कि सम्पूर्ण देश की सेवा का प्रतीक बन जाते हैं। भागवत झा आजाद उन में से एक हैं, जिन्हें 'शेर-ए-बिहार' के नाम से जाना जाता था।

आजादी के आंदोलन से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय करने वाले इस योद्धा का जीवन संघर्ष, समर्पण और अटूट इच्छाशक्ति का उदाहरण है, जो आज भी युवाओं को प्रेरित करता है।

भागवत झा आजाद का जन्म 28 नवंबर 1922 को अविभाजित बिहार (अब झारखंड) के गोड्डा जिले के मेहरमा प्रखंड के कसबा गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता एक मेहनती किसान थे, जिन्होंने बेटे को बचपन से ही कठोर परिश्रम और देशभक्ति की सीख दी।

आजाद का पूरा नाम भागवत झा था, लेकिन 'आजाद' उपनाम का जुड़ना एक दिलचस्प किस्से से जुड़ा है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब वे गिरफ्तार हुए, तो ब्रिटिश पुलिस ने उनका नाम पूछा। उन्होंने गर्व से कहा, "मेरा नाम आजाद है।" इस घटना ने न केवल उन्हें आजादी का प्रतीक बना दिया, बल्कि उनके व्यक्तित्व की जिद और साहस को भी उजागर किया।

शिक्षा के मामले में आजाद बेहद मेहनती थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई स्थानीय स्कूलों में की और बाद में भागलपुर विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की। लेकिन उनकी पढ़ाई बीच में रुक गई, जब 1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन ने जोर पकड़ा। युवा आजाद आंदोलन में कूद पड़े। वे रात-दिन भूमिगत गतिविधियों में लगे रहे, ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ पर्चे बांटते, सभाओं का आयोजन करते और साथियों को प्रेरित करते।

इस आंदोलन के कारण उन्हें कई बार जेल यात्रा करनी पड़ी। जेल से बाहर आकर उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपना जीवन समर्पित कर दिया। बिहार प्रांत कांग्रेस कमेटी में उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो गई कि वे जल्द ही प्रदेश स्तर के नेता बन गए।

भागवत झा आजाद का राजनीतिक सफर 1950 के दशक से चमका। वे बिहार विधानसभा के सदस्य बने और विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के रूप में सेवा की। लेकिन असली ऊंचाई तब आई, जब उन्होंने लोकसभा चुनावों में धमाल मचाया। भागलपुर लोकसभा सीट से वे पांच बार सांसद चुने गए। संसद में उनकी वाकपटुता और तर्कशक्ति ऐसी थी कि विपक्षी नेता भी उनका लोहा मानते थे।

बिहार की राजनीति में आजाद का योगदान अविस्मरणीय है। 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक वे बिहार के 18वें मुख्यमंत्री रहे। इस छोटे से कार्यकाल में उन्होंने राज्य की बुनियादी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य, कृषि सुधार और गरीबी उन्मूलन योजनाओं को गति दी।

भागवत झा आजाद का निजी जीवन भी उतना ही प्रेरणादायक था। वे एक पारिवारिक व्यक्ति थे। उनके पुत्र कीर्ति आजाद क्रिकेटर से राजनेता बने, जिन्होंने 1983 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा होने का गौरव प्राप्त किया। आजाद स्वयं खेलप्रेमी थे और युवाओं को खेल के माध्यम से अनुशासन सिखाते थे।

4 अक्टूबर 2011 को 88

Point of View

NationPress
03/10/2025

Frequently Asked Questions

भागवत झा आजाद का जन्म कब हुआ था?
भागवत झा आजाद का जन्म 28 नवंबर 1922 को हुआ था।
'शेर-ए-बिहार' का क्या अर्थ है?
'शेर-ए-बिहार' का अर्थ है बिहार का शेर, जो भागवत झा आजाद के साहस और नेतृत्व को दर्शाता है।
भागवत झा आजाद ने किस आंदोलन में भाग लिया?
उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आजाद ने कब बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला?
उन्होंने 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला।
आजाद का निधन कब हुआ?
उनका निधन 4 अक्टूबर 2011 को हुआ।