क्या बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण के मामले में चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाएंगे : पवन खेड़ा?

सारांश
Key Takeaways
- मतदाता सूची पुनरीक्षण महत्वपूर्ण है लोकतंत्र के लिए।
- पवन खेड़ा ने चुनाव आयोग के खिलाफ कार्रवाई का ऐलान किया।
- बच्चों पर भाषाई दबाव नहीं डालना चाहिए।
- सरकार का मुफ्त राशन पर निर्भरता एक विफलता है।
- भाजपा की आरोपों पर कांग्रेस ने विरोध जताया।
नई दिल्ली, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। इस मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाने के बयान पर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जो भी विकल्प मौजूद होंगे, उनका अध्ययन किया जाएगा। हम अगले एक-दो दिन में चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाएंगे।
पवन खेड़ा ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि चुनाव आयोग द्वारा की जा रही गतिविधियों पर विपक्ष ने भी सवाल उठाए हैं। हमारे पास जो भी विकल्प उपलब्ध होंगे, हम उनका उपयोग करेंगे ताकि चुनाव आयोग ऐसी अलोकतांत्रिक प्रक्रिया लागू न कर सके।
महाराष्ट्र सरकार के त्रिभाषा नीति को वापस लेने के निर्णय पर पवन खेड़ा ने कहा कि हमारी पार्टी का स्पष्ट मत है कि पहली कक्षा के बच्चों पर इतनी भाषाई जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए। इतनी कम उम्र में बच्चों पर दबाव नहीं होना चाहिए। पांचवीं कक्षा के बाद की बात अलग है, लेकिन इतनी कम उम्र में यह उचित नहीं है।
भारत में सामाजिक सुरक्षा के मामले में दूसरे स्थान पर आने पर पवन खेड़ा ने कहा कि पीएम मोदी का कहना है कि उनकी सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है। सरकार इसे अपनी सबसे बड़ी सफलता मान रही है, लेकिन यह सरकार की विफलता है कि लोग मुफ्त राशन पर निर्भर हैं।
तेजस्वी यादव के वक्फ संशोधन बिल को "कूड़ेदान में फेंकने" वाले बयान पर भाजपा की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई। भाजपा नेताओं का आरोप है कि विपक्षी दल देश में शरिया कानून लागू करना चाहता है। इस पर प्रतिक्रिया देने पर पवन खेड़ा ने कहा कि यह एक शर्मनाक बयान है। नए वक्फ कानून के खिलाफ हम पहले से ही विरोध जता रहे हैं। हमारी आवाज को नजरअंदाज किया गया।
कोलकाता लॉ कॉलेज में सामूहिक दुष्कर्म की जांच के लिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा चार सदस्यीय समिति को कोलकाता भेजने पर पवन खेड़ा ने कहा कि यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन उन्हें अपने शासित क्षेत्रों में भी महिलाओं के खिलाफ स्थिति को लेकर चिंता करनी चाहिए।