क्या बिहार चुनाव नतीजों ने यूपी के विपक्षी दलों के समीकरण बिगाड़ दिए हैं?
सारांश
Key Takeaways
- बिहार चुनाव ने विपक्षी दलों की रणनीति को प्रभावित किया।
- महागठबंधन की असफलता से सपा और कांग्रेस को सीखने की जरूरत है।
- रणनीति में बदलाव के लिए विपक्ष को एकजुट होना होगा।
लखनऊ, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने विपक्षी दलों को सीख लेने का संकेत दिया है। महागठबंधन की फिल्म के असफल होने के बाद, अब विपक्षी दलों के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करने की मजबूरी सामने आ गई है।
यहां के नतीजों के बाद इसकी चर्चा होने लगी है। हालांकि, सपा मुखिया ने इसके लिए एसआईआर को जिम्मेदार ठहराया है। सपा खेमे में यह चर्चा भी तेज हो गई है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन उत्तर प्रदेश में कितना लाभकारी होगा।
पिछले दो लोकसभा चुनावों और कई विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत सीमित रहा है, जबकि सीटों की साझेदारी में सपा को अपेक्षाकृत अधिक समझौता करना पड़ता है। बिहार में हुए प्रदर्शन ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस नतीजे ने विपक्षी रणनीति की कमजोरियों को उजागर किया है, साथ ही कांग्रेस के साथ गठबंधन की उपयोगिता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल के अनुसार, किसी भी सरकार की आलोचना तार्किकता पर होनी चाहिए।
बिहार में नीतीश कुमार की आलोचना हुई, लेकिन उन्हें समाज के हर तबके का समर्थन मिला। यूपी में सीएम योगीएंटी इनकंबेंसी कोई फैक्टर नहीं है। इसका उदाहरण यूपी और उत्तराखंड में देखा जा सकता है। जब चुनावी रणनीति बनाते हैं, तो संगठन का आंकलन जरूर करें।
विश्लेषकों का कहना है कि गठबंधन की ओर से तेजस्वी और राहुल ने अपने को नेता मान लिया और सहयोगियों का साथ नहीं दिया। यूपी में सपा-कांग्रेस को बयानबाजी में भी सामंजस्य दिखाना होगा।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक आमोदकांत का कहना है कि सपा मुखिया अखिलेश को अब आने वाले चुनावों से पहले अपनी रणनीति का व्यापक पुनर्मूल्यांकन करना होगा। बिहार के नतीजों ने साफ कर दिया है कि केवल विपक्षी एकता के नारे से चुनावी जमीन नहीं बदलती, बल्कि एकता दिखनी भी जरूरी है। बिहारअखिलेश के लिए महज़ एक चुनावी नतीजा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि भविष्य की लड़ाई मजबूत तैयारी, नई रणनीति और सही साझेदारियों से ही जीती जा सकती है।
उन्होंने कहा कि बिहार चुनाव ने जहां एनडीए को एक नई ताकत दी है, वहीं विपक्षी दलों सपा और कांग्रेस के लिए बड़ा सबक सिखा दिया है। विपक्षी दलों का वोट चोरी मुद्दा और जातीय गणित का सिस्टम फेल रहा। सपा के सामने 2024 वाली जीत बरकरार रखने की चुनौती है। इसके साथ पीडीए के साथ अन्य रणनीति पर भी फोकस करना होगा। इसके साथ बसपा पहले से ज्यादा एक्टिव है। ऐसे में दलित वोट बैंक में सेंधमारी करना भी बड़ी चुनौती होगी।