क्या बिहार के मुजफ्फरपुर में महिलाओं ने जितिया का निर्जला व्रत रखा?

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क्या बिहार के मुजफ्फरपुर में महिलाओं ने जितिया का निर्जला व्रत रखा?

सारांश

मुजफ्फरपुर में जितिया व्रत का आयोजन हुआ, जहां हजारों महिलाओं ने निर्जला उपवास रखा। इस पावन अवसर पर पूजा-अर्चना का दौर दिन से रात तक चलता रहा। जानें इस व्रत का महत्व और कथा के पीछे छिपे संदेश।

Key Takeaways

  • जितिया व्रत संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।
  • यह निर्जला उपवास है, जिसमें महिलाएं बिना जल और अन्न ग्रहण करती हैं।
  • कथा में चील और सियार की कहानी महत्वपूर्ण है।
  • यह व्रत मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतीक है।
  • मंदिरों में भक्ति भजन और मंत्रोच्चार से वातावरण गूंजता है।

मुजफ्फरपुर, 15 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बिहार के मुजफ्फरपुर के विभिन्न मंदिरों और शिवालयों में जितिया व्रत का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस पावन अवसर पर हजारों महिलाओं ने अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखा। मंदिरों में सुबह से ही पूजा-अर्चना और कथा-श्रवण का दौर चलता रहा, जो देर रात तक जारी रहा।

संतोषी माता मंदिर, बाबा गरीबनाथ मंदिर और अन्य प्रमुख देवालयों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई, जहां महिलाओं ने श्रद्धापूर्वक जितिया की कथा सुनने के साथ-साथ भक्ति में लीन होकर पूजा-अर्चना की।

संतोषी माता मंदिर में पंडित राम श्रेष्ठ झा ने जितिया व्रत की कथा सुनाई। उन्होंने महिलाओं को जीवित्पुत्र की कथा के महत्व को समझाते हुए बताया कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनके सुखमय जीवन के लिए किया जाता है। कथा में चील और सियार की कहानी का उल्लेख हुआ, जो इस व्रत के नियमों और अनुशासन के महत्व को दर्शाती है।

पंडित झा ने कहा कि चील ने ब्राह्मण से कथा सुनकर व्रत के नियमों का पालन किया, जिसके कारण उसके बच्चे स्वस्थ और सुरक्षित रहे। वहीं, सियार ने व्रत तोड़कर भोजन किया, जिसके परिणामस्वरूप उसके बच्चों की मौत हो गई। बाद में चील के मार्गदर्शन पर सियार ने नियमपूर्वक व्रत किया, जिससे उसके बच्चे पुनर्जनन पा गए।

देवी मंदिर के प्रधान पुजारी डॉ. धर्मेंद्र तिवारी ने बताया कि जितिया का व्रत अत्यंत कठिन और पवित्र है। यह निर्जला उपवास होता है, जिसमें महिलाएं बिना जल और अन्न ग्रहण किए पूरे दिन उपवास रखती हैं।

उन्होंने कहा, “यह व्रत केवल शारीरिक अनुशासन ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता का भी प्रतीक है। कथा सुनने और नियमों का पालन करने से माताओं को अपनी संतान के लिए विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।”

धर्मेंद्र तिवारी ने बताया कि कथा लंबी और प्रेरणादायक है, जो श्रद्धालुओं को धैर्य और विश्वास का पाठ पढ़ाती है। मंदिरों में रात 9 बजे तक पूजा-अर्चना और कथा-श्रवण का सिलसिला जारी रहा। महिलाओं ने मंदिरों को फूलों और दीपों से सजाया, और मां जितिया की विशेष पूजा की।

इस अवसर पर मंदिर परिसर भक्ति भजनों और मंत्रोच्चार से गूंज उठा। तमाम महिलाओं ने कहा कि यह व्रत मेरे लिए मेरे बच्चों की सुरक्षा का प्रतीक है। हर साल मैं पूरे मन से इस व्रत को करती हूं।

Point of View

बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक भी हैं, जो हमें हमारे अतीत से जोड़ते हैं। इस प्रकार के उपवास और पूजा हमें संयम और धैर्य का पाठ पढ़ाते हैं।
NationPress
14/09/2025

Frequently Asked Questions

जितिया व्रत का क्या महत्व है?
जितिया व्रत का महत्व संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए है। यह माताओं का अपने बच्चों के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है।
निर्जला उपवास क्या होता है?
निर्जला उपवास का मतलब होता है बिना जल और अन्न के पूरे दिन उपवास रखना। यह व्रत मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता का भी प्रतीक है।
इस व्रत की कथा में क्या संदेश है?
इस व्रत की कथा में चील और सियार के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि नियमों का पालन करना आवश्यक है, ताकि संतान की रक्षा हो सके।