क्या भाजपा केवल नाम बदलने की राजनीति कर रही है? : सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा

सारांश
Key Takeaways
- भाजपा नाम बदलने की राजनीति कर रही है।
- जमीनी मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
- सपा ने परशुराम की जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित किया था।
- अब्बास अंसारी की सदस्यता समाप्ति अलोकतांत्रिक है।
- आर्थिक मुद्दों पर भाजपा की चुप्पी चिंता का विषय है।
लखनऊ, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के जलालाबाद का नाम अब परशुरामपुरी रख दिया गया है। इस संदर्भ में समाजवादी पार्टी के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने भाजपा पर तीखा हमला बोला है।
इस निर्णय के बारे में बात करते हुए रविदास मेहरोत्रा ने राष्ट्र प्रेस से कहा कि भाजपा केवल नाम बदलने की राजनीति कर रही है, जबकि जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा, "हम सभी भगवान परशुराम का सम्मान करते हैं। समाजवादी पार्टी पहली पार्टी थी, जिसने भगवान परशुराम जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित किया था। हमारी सरकार में भगवान परशुराम की प्रतिमा भी स्थापित की गई थी। भाजपा केवल नाम बदलकर जनता को भ्रमित कर रही है, जबकि असल में भगवान परशुराम को सम्मान देने का कार्य सपा ने किया है।"
रविदास मेहरोत्रा ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, "भाजपा के नेता महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध, खराब स्वास्थ्य सेवाएं और स्कूलों के बंद होने जैसे असली मुद्दों पर चर्चा नहीं करते। न तो कोई विकास का कार्य हो रहा है, न योजनाओं का सही क्रियान्वयन। केवल नाम बदलकर जनता को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है, ताकि वोट प्राप्त किए जा सकें।"
उन्होंने अब्बास अंसारी के विधानसभा सदस्यता समाप्ति पर भी बड़ा बयान दिया। कहा, "अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता खत्म करना पूरी तरह अलोकतांत्रिक था। किसी भी व्यक्ति के आंदोलन या भाषण पर त्वरित कार्रवाई करना संविधान के खिलाफ है। मामला हाईकोर्ट में गया है और कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है। इसलिए, अब्बास अंसारी को फिर से विधानसभा सदस्य बनाया जाना चाहिए।"
बातचीत के दौरान रविदास मेहरोत्रा ने कहा, "अमित शाह द्वारा लाए गए बिल न्याय और संविधान के खिलाफ हैं। यह लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास है। यदि ये कानून लागू होते हैं, तो देश का प्रधानमंत्री किसी मुख्यमंत्री को सजा देकर पद से हटा सकेगा।"
उन्होंने बताया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव में धांधली और वोट चोरी के प्रमाण के साथ 18 एफिडेविट चुनाव आयोग को सौंपे थे, लेकिन आयोग ने जवाब दिया कि उसे कोई पत्र नहीं मिला। जब अखिलेश यादव ने रसीदें दिखाई, तब भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया। अब जिलाधिकारी मामले पर जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि जवाब सीधे चुनाव आयोग को देना चाहिए।