क्या दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों के दर्शन से पूरी होती है मुराद?

सारांश
Key Takeaways
- दक्षिण भारत के ये मंदिर धार्मिक आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं।
- हर मंदिर की अपनी अनोखी मान्यता और इतिहास है।
- भक्तों का मानना है कि केवल दर्शन से ही इच्छाएं पूरी होती हैं।
- ये मंदिर विश्व धरोहर का हिस्सा भी हैं।
- इन मंदिरों में विभिन्न तत्वों की पूजा की जाती है।
नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में शिव की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है। उत्तर से लेकर दक्षिण में विभिन्न परंपराओं के साथ भगवान शिव की आराधना होती है। दक्षिण भारत में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं, जहां भक्त अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए आते हैं।
आज हम दक्षिण भारत के कुछ प्रमुख शिव मंदिरों की जानकारी साझा कर रहे हैं।
तमिलनाडु के महाबलीपुरम में बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित शोर मंदिर प्राचीन मंदिरों में गिना जाता है। कहा जाता है कि इसका निर्माण पल्लव राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने कराया था। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु भी मौजूद हैं। इसे महाबलीपुरम के मंदिर समूह का हिस्सा माना जाता है, जिसकी अनोखी और प्राचीन वास्तुकला ने इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया है।
आंध्र प्रदेश के तिरुपति में चित्तूर जिले में स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर स्वर्णमुखी नदी पर बना है। यहां भगवान शिव को वायु तत्व के रूप में पूजा जाता है, और यह माना जाता है कि जहरीले जीव-जंतु जैसे मकड़ी, सांप और बिच्छू यहां मोक्ष प्राप्त करने आते हैं। यह वह स्थान है जहां पवन देव ने भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इस मंदिर में एक अखंड ज्योति भी जलती रहती है, जो कभी नहीं बुझती।
तमिलनाडु के रामेश्वरम तट पर रामनाथस्वामी मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसका इतिहास भगवान राम से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका जाने से पहले यहां मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी।
तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित थिल्लई नटराज मंदिर अपनी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव और मां पार्वती के बीच नृत्य की प्रतियोगिता हुई थी। भक्तों का मानना है कि यहां केवल दर्शन करने से ही भगवान शिव उनकी सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं।
तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में अरुणाचलेश्वर मंदिर शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। इसकी वास्तुकला भी हमेशा से आकर्षण का केंद्र रही है। यहां भगवान शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच यह तय करने के लिए एक स्तंभ की ओर-छोर खोजने को कहा। भगवान विष्णु ने हार मान ली, जबकि ब्रह्मा ने झूठ बोला। इस स्थिति में भगवान शिव ने ब्रह्मा को कभी न पूजा जाने का श्राप दे दिया।