क्या हेमंत सरकार झारखंड के बालू घाटों को खनन माफियाओं के हवाले कर रही है? - बाबूलाल मरांडी

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क्या हेमंत सरकार झारखंड के बालू घाटों को खनन माफियाओं के हवाले कर रही है? - बाबूलाल मरांडी

सारांश

क्या झारखंड की सरकार बालू घाटों को खनन माफियाओं को सौंप रही है? बाबूलाल मरांडी ने गंभीर आरोप लगाए हैं। जानें इस मुद्दे पर उनके विचार और सरकार की नीतियों के बारे में उनका दृष्टिकोण।

Key Takeaways

  • सरकार द्वारा बालू घाटों की नीलामी पर विवाद।
  • ग्राम सभाओं के अधिकारों का हनन।
  • बाबूलाल मरांडी के गंभीर आरोप।
  • स्थानीय युवाओं के लिए अवसरों में कमी।
  • पेसा नियमावली का महत्व।

रांची, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड में बालू घाटों की नीलामी को लेकर राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ है। झारखंड विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने ग्राम सभाओं के अधिकारों का हनन कर बालू घाटों को खनन माफियाओं के हवाले करने का मार्ग प्रशस्त किया है।

मरांडी ने शुक्रवार को भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि राज्य सरकार ने बालू घाटों की नीलामी के लिए जिस प्रकार की नियमावली तैयार की है, वह पूरी तरह से माफियाओं और बिचौलियों को संरक्षण देने वाली है। उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने बालू घाटों के टेंडर में आवेदन के लिए 15 करोड़ रुपये का वार्षिक टर्नओवर अनिवार्य कर दिया है। इतना बड़ा मानदंड गरीब, बेरोजगार और आदिवासी युवाओं को नीलामी से बाहर करने का कार्य करता है।

उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि इतना टर्नओवर किस स्थानीय युवा के पास होगा? यह नियम इस बात का संकेत है कि पहले से तय सेटिंग वाले लोग ही इसमें शामिल होंगे। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार एक ओर स्थानीय युवकों को निजी संस्थानों में 75 प्रतिशत नौकरियां दिलाने और 25 लाख रुपये तक के काम का ठेका स्थानीय लोगों को देने का वादा करती है, लेकिन दूसरी ओर बालू घाटों की नीलामी के लिए ऐसे प्रावधान करती है जिससे स्थानीय युवकों, बेरोजगारों और कमजोर तबकों के पास कोई अवसर न हो।

मरांडी ने कहा कि सरकार ने पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया) नियमावली अब तक जानबूझकर लागू नहीं की है। यदि यह नियमावली लागू होती तो ग्राम सभाओं को बालू घाटों पर अधिकार प्राप्त होता। उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट के हालिया आदेश का उल्लेख करते हुए कहा कि पेसा नियमावली लागू न होने के कारण ही अदालत ने बालू घाटों की नीलामी पर रोक लगाई है।

उन्होंने कहा कि सरकार की यह नीति न केवल आदिवासियों- मूलवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि राज्य में खनन माफियाओं को मजबूत करने की साजिश भी है। मरांडी ने चेतावनी दी कि बालू घाटों की बंदोबस्ती में चल रही गड़बड़ियों के कारण सरकार के बड़े चेहरे आने वाले दिनों में जेल की सलाखों के पीछे जा सकते हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि बालू घाट हस्तांतरण की प्रक्रिया पारदर्शी, स्थानीय हितैषी और ग्राम सभा के निर्णयों के अनुरूप बनाई जाए।

Point of View

यह स्पष्ट है कि झारखंड की बालू घाटों की नीलामी से जुड़े आरोप गंभीर हैं। यह स्थिति न केवल स्थानीय समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि माफिया तत्वों को बढ़ावा देती है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि संसाधनों का सही और पारदर्शी उपयोग हो, ताकि समाज के सभी वर्गों को लाभ मिल सके।
NationPress
12/09/2025

Frequently Asked Questions

बालू घाटों की नीलामी से स्थानीय युवाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
बालू घाटों की नीलामी में उच्च टर्नओवर की अनिवार्यता स्थानीय बेरोजगार युवाओं के लिए अवसरों को सीमित कर सकती है, जिससे उन्हें नीलामी में भाग लेने में कठिनाई होगी।
हेमंत सोरेन सरकार पर आरोप क्या हैं?
बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि सरकार ने ग्राम सभाओं के अधिकारों का हनन किया है और बालू घाटों को खनन माफियाओं के हवाले किया है।
पेसा नियमावली का क्या महत्व है?
पेसा नियमावली ग्राम सभाओं को स्थानीय संसाधनों पर अधिकार देती है। यदि लागू होती है, तो यह बालू घाटों पर ग्राम सभाओं के अधिकार को सुनिश्चित कर सकती है।