क्या शरद पवार का कहना है कि कक्षा एक से हिंदी अनिवार्य करना उचित नहीं है?

सारांश
Key Takeaways
- हिंदी को पहली कक्षा से अनिवार्य बनाना उचित नहीं है।
- पांचवीं कक्षा से हिंदी पढ़ाई का समर्थन किया गया है।
- मातृभाषा का महत्व भी बताया गया है।
मुंबई, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र में हिंदी भाषा का मुद्दा एक बार फिर से राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बन गया है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बाद, शरद पवार ने भी सरकार के निर्णय पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। एनसीपी-शरद गुट के नेता ने कहा कि पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य बनाना उचित नहीं है।
शरद पवार ने शुक्रवार को कोल्हापुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "इस मुद्दे के दो पक्ष हैं। पहली कक्षा से प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करना सही नहीं है। पांचवीं कक्षा से इसे सीखने का निर्णय छात्रों के लिए लाभदायक होगा। आज हमारे देश में लगभग 55 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
उन्होंने आगे कहा, "महाराष्ट्र में लोग हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन पहली कक्षा से बच्चों पर नई भाषा थोपना उचित नहीं है। वहाँ मातृभाषा की महत्वपूर्ण भूमिका है।" पवार ने महाराष्ट्र की राजनीति में बढ़ते विरोध का उल्लेख करते हुए कहा कि "दोनों ठाकरे (उद्धव और राज ठाकरे) हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ हैं।"
गौरतलब है कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने हिंदी भाषा का विरोध करते हुए आंदोलन की घोषणा की है। 6 जुलाई को राज ठाकरे की ओर से मुंबई में एक मार्च का आयोजन किया जाएगा, जबकि उद्धव ठाकरे 7 जुलाई को आंदोलन करेंगे।
शरद पवार ने इन प्रदर्शनों में भाग लेने के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा, "मैंने दोनों ठाकरे के बयानों का अध्ययन किया है। मैं मुंबई जाकर उनकी बातें समझूंगा और उनसे मिलूंगा। अगर यह मुद्दा आपकी रुचि का है, तो आपको उनकी नीति को गंभीरता से समझना चाहिए।"