क्या जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर सुनवाई होगी?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 4 सप्ताह का समय दिया है।
- जम्मू-कश्मीर की 99 प्रतिशत जनसंख्या भारत सरकार को अपनी सरकार मानती है।
- पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में हो रही देरी नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित कर रही है।
- सुनवाई में जमीनी हकीकत को ध्यान में रखने की जरूरत है।
- संघवाद का मूल ढांचा संविधान में निहित है।
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा लौटाने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को की। इस दौरान, केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई को टालने का अनुरोध किया। अदालत ने पहलगाम घटना का उल्लेख किया, जबकि पहले भी इस मुद्दे पर चर्चा की गई थी कि जमीनी हकीकत को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि पहलगाम की यह घटना उनकी सरकार के कार्यकाल में हुई थी। सॉलिसिटर जनरल ने इस दलील पर आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि 'यह उनकी सरकार' शब्द से उन्हें आपत्ति है। उन्होंने याचिकाकर्ता को 'हमारी सरकार' शब्द का उपयोग करने की सलाह दी।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की 99 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या भारत सरकार को अपनी सरकार मानती है। जम्मू कश्मीर कॉलेज के शिक्षक जहूर अहमद भट्ट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करे।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी केंद्र सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।
जहूर अहमद भट और खुर्शीद अहमद मलिक की ओर से दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में हो रही देरी जम्मू और कश्मीर के नागरिकों के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है और संघवाद की अवधारणा का उल्लंघन कर रही है।
आवेदकों का तर्क है कि समयबद्ध सीमा के भीतर राज्य का दर्जा बहाल न करना संघवाद का उल्लंघन है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।