क्या झारखंड में शिक्षक नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला है?

सारांश
Key Takeaways
- झारखंड हाईकोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देने का आदेश दिया है।
- फैक्ट फाइंडिंग कमीशन का गठन एक महत्वपूर्ण कदम है।
- सभी अभ्यर्थियों को समान अवसर मिलना चाहिए।
- राज्य सरकार को नियुक्ति में सुधार करना होगा।
- यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
रांची, 1 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति की मेरिट लिस्ट पर विवाद के संदर्भ में सोमवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। अदालत ने इस मामले की जांच के लिए सेवानिवृत्त जस्टिस डॉ. एसएन पाठक की अध्यक्षता में 'वन मैन फैक्ट फाइंडिंग कमीशन' का गठन करने का निर्देश दिया।
कमीशन को तीन महीने के अंदर अपनी पूरी जांच खत्म करके रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
मेरिट लिस्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपक रोशन की एकल पीठ ने लगभग 75 पन्नों के अपने निर्णय में विस्तृत दिशा-निर्देश दिए।
अदालत ने कहा कि झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा कितने अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गई, कितने पद सरेंडर किए गए और इसके पीछे क्या कारण थे, इन सभी पहलुओं की जांच आवश्यक है, जिसके लिए फैक्ट फाइंडिंग कमीशन का गठन किया जा रहा है।
अदालत ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) और झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) को फैक्ट फाइंडिंग काउंटर स्थापित करने का भी आदेश दिया है, ताकि अभ्यर्थियों को भर्ती से संबंधित जानकारी आसानी से मिल सके और उन्हें बार-बार अदालत का सहारा न लेना पड़े।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि वर्ष 2016 की हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति की मेरिट लिस्ट में गंभीर त्रुटियां हुईं। उनका कहना था कि कई ऐसे अभ्यर्थियों को चयनित कर लिया गया, जिनके अंक कम थे, जबकि अधिक अंक प्राप्त करने वालों को बाहर कर दिया गया।
राज्य सरकार की ओर से दाखिल शपथ पत्र में पदों की संख्या को लेकर विरोधाभास सामने आया।
वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने सोनी कुमारी एवं अन्य की याचिका पर सुनवाई के बाद 425 अभ्यर्थियों की नियुक्ति का आदेश दिया था, लेकिन सरकार ने बताया कि केवल 377 ने योगदान दिया।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार, इंद्रजीत सिन्हा एवं अपराजिता भारद्वाज और जेएसएससी की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन, संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह ने अपना पक्ष रखा।