क्या जस्टिस बीआर गवई ने खुद पर हुए दुर्व्यवहार पर अपनी चुप्पी तोड़ी?

सारांश
Key Takeaways
- चीफ जस्टिस बीआर गवई ने दुर्व्यवहार को भूला हुआ अध्याय बताया।
- सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कड़ी कार्रवाई की।
- दुर्व्यवहार में शामिल वकील का नाम राकेश किशोर था।
- यह घटना 6 अक्टूबर को हुई थी।
- वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने इस पर लेख लिखा था।
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने गुरुवार को अदालत कक्ष में वकील राकेश किशोर द्वारा किए गए दुर्व्यवहार की कोशिश के बारे में अपनी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा, "उस दिन की घटनाओं से मैं और मेरी बेंच के अन्य जज चकित थे, लेकिन अब यह हमारे लिए एक भूला हुआ अध्याय बन चुका है।"
चीफ जस्टिस ने यह टिप्पणी एक वकील के साथ बातचीत के दौरान की। इस बातचीत में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी और बताया कि उन्होंने इस विषय पर एक लेख लिखा है। उन्होंने उल्लेख किया कि लगभग 10 वर्ष पहले भी सुप्रीम कोर्ट में ऐसी ही एक घटना हुई थी। उस समय जजों ने एक भिन्न दृष्टिकोण अपनाते हुए अवमानना की शक्तियों का उपयोग किया था।
गोपाल शंकर नारायणन ने कहा, "मैंने उस समय भी इस घटना पर एक लेख लिखा था। लगभग एक दशक पहले एक अन्य अदालत में भी इसी प्रकार की घटना घटी थी। उस दौरान दो न्यायाधीशों के बीच इस बात पर मतभेद था कि अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रिया क्या होनी चाहिए।"
चीफ जस्टिस बीआर गवई के साथ मौजूद जस्टिस उज्जल भुइयां ने इस घटना पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, "मेरे अपने विचार इस मामले में भिन्न हैं। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं, यह कोई मजाक का विषय नहीं है। यह घटना न्यायालय और न्यायपालिका के संस्थान के प्रति अपमानजनक है।"
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट में CJI बीआर गवई के साथ दुर्व्यवहार करने वाले वकील राकेश किशोर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने गुरुवार को कड़ी कार्रवाई की। एसोसिएशन की कार्यकारिणी समिति ने राकेश किशोर के अस्थायी पंजीकरण को रद्द करते हुए उनका प्रवेश पास भी निरस्त कर दिया।
एससीबीए की कार्यकारिणी समिति ने एक संकल्प पारित किया, जिसमें इस घटना को गंभीर कदाचार बताया गया। यह घटना 6 अक्टूबर को हुई थी। समिति ने कहा कि इस प्रकार का अनुशासनहीन और अशिष्ट व्यवहार किसी भी न्यायालय के अधिकारी के लिए बिल्कुल अनुचित है और यह पेशेवर आचार संहिता, न्यायालय के शिष्टाचार और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा के खिलाफ है।