क्या करिंजेश्वर मंदिर चार युगों का साक्षी है, जो महाभारत के प्रमाण आज भी मौजूद हैं?
सारांश
Key Takeaways
- करिंजेश्वर मंदिर चार युगों के अस्तित्व का प्रतीक है।
- यह मंदिर पांडवों से जुड़ी ऐतिहासिक कथा को दर्शाता है।
- यहाँ मौजूद कुंड का पानी अमृत के समान है।
- मंदिर तक पहुँचने का रास्ता रोमांचक और चुनौतीपूर्ण है।
- भगवान शिव और अर्जुन की अद्भुत कथा यहाँ छिपी है।
नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हर एक मंदिर की अपनी विशेष पौराणिक कथा और इतिहास होता है, जो उसे अन्य मंदिरों से अलग बनाता है। कुछ मंदिर रामायण से जुड़े हैं, तो कुछ महाभारत काल के हैं, लेकिन कर्नाटक की पहाड़ी पर स्थित भगवान शिव का करिंजेश्वर मंदिर चार युगों का साक्षी है।
मंदिर के इतिहास के अनुसार, यह मंदिर सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग में भी अस्तित्व में रहा है।
दक्षिण कन्नड़ जिले के बंटवाल तालुका में करिंजा गांव में पहाड़ी की चट्टान पर स्थित करिंजेश्वर मंदिर अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंदिर तक पहुँचने का मार्ग बेहद खतरनाक और संकरा है। पहाड़ को काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जिनसे होते हुए पहले भगवान गणेश, फिर मां पार्वती और अंत में पहाड़ की चोटी पर भगवान शिव का मंदिर है।
शिव मंदिर से पहले एक कुंड भी मौजूद है। मान्यता है कि जब पांडवों को प्यास लगी थी, तब भीम ने अपनी गदा से चट्टान में छेद कर पानी का झरना निकाला था। इस कुंड के पानी को अमृत माना जाता है और यह किसी भी मौसम में सूखता नहीं है।
इसके अलावा, जब भीम ने जमीन पर घुटनों के बल बैठे, तो उन्होंने अपने अंगूठे से 'अंगुष्ठ तीर्थ' और 'जानु तीर्थ' का निर्माण किया। अर्जुन ने एक सुअर पर बाण चलाकर 'हांडी तीर्थ' या 'वराह तीर्थ' का निर्माण किया था। 'अंगुष्ठ तीर्थ' और 'जानु तीर्थ' की मान्यता धार्मिक ग्रंथों में देखने को मिलती है, जिनका उपयोग पितरों के तर्पण या जल अर्पण के समय किया जाता है।
मंदिर की पौराणिक कथा भी महाभारत काल में सुनने को मिलती है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव कुछ समय के लिए इसी स्थान पर रुके थे। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए भगवान शिव की भक्ति कर पाशुपतास्त्र लाने का आदेश दिया था।
इसी पहाड़ी पर बैठकर अर्जुन ने भगवान शिव के करिंजेश्वर रूप की पूजा की थी। अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव शिकारी के रूप में आए और अर्जुन से युद्ध करने लगे। पहले तो अहंकार में आकर अर्जुन ने भगवान शिव से युद्ध किया, लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि यह आम शिकारी नहीं, बल्कि दिव्य शक्ति है। अर्जुन के क्षमा मांगने के बाद भगवान शिव ने उन्हें प्रसन्न होकर पाशुपतास्त्र दिया।
पहाड़ी पर आज भी कुछ ऐसे निशान मौजूद हैं, जो युद्ध की गवाही देते हैं।