क्या कथा कहने का हक सभी को है? : राजद नेता तेजस्वी यादव

सारांश
Key Takeaways
- कथा कहने का अधिकार सभी को है।
- भाजपा का दोहरा चरित्र।
- पिछड़ों और दलितों के अधिकारों की रक्षा का मुद्दा।
- धार्मिक स्वतंत्रता का महत्व।
- सामाजिक असमानता और भेदभाव।
पटना, 25 जून (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में एक धार्मिक कथावाचक के साथ कथित तौर पर मारपीट और अपमानजनक व्यवहार को लेकर बयानबाजियों का सिलसिला जारी है। इस बीच, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी इस विवाद में कूद पड़े हैं। उन्होंने बुधवार को कहा कि कथा कहने का अधिकार सभी को है।
तेजस्वी यादव ने पटना में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वर्तमान में जो लोग सत्ता में हैं, वे गोडसे के अनुयायी हैं। उन्होंने चुनौती दी कि यदि ऐसा नहीं है तो वे 'गोडसे मुर्दाबाद' का नारा लगाकर दिखाएं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में कथावाचकों के प्रति किस तरह का भेदभाव किया जा रहा है, यह सब देख रहे हैं। कथा कहने का हक सभी को है।
उन्होंने आगे कहा, "भाजपा के नेताओं को इसका जवाब देना चाहिए कि क्या पिछड़ा, अतिपिछड़ा कथावाचक नहीं बन सकते? क्या दलित किसी मंदिर का पुजारी नहीं बन सकता? क्या हम लोग हिंदू नहीं हैं कि भगवान की कथा को लोगों के बीच में प्रस्तुत करें?"
तेजस्वी यादव ने भाजपा के दोहरे चरित्र पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग आरएसएस से जो सीखे हैं, वही इनके पास है और कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता जो पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों के बारे में बात करते हैं, वह सिर्फ ढकोसला है। इन लोगों को पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों से नफरत है।
अवगत रहे कि 21 जून को यूपी के इटावा जिले के एक गांव में एक भागवत कथा का आयोजन हुआ था। इस आयोजन के दौरान कुछ ग्रामीणों ने कथावाचकों की जाति को लेकर आपत्ति जताई। आरोप है कि कथावाचकों ने अपने को ब्राह्मण बताकर कथा का आयोजन किया, जबकि वे अन्य जाति से थे।
इस विवाद ने तूल पकड़ा और कुछ लोगों ने कथावाचकों के साथ मारपीट शुरू कर दी और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।