क्या नेम प्लेट विवाद पर असीम अरुण ने कहा, 'अशुद्ध भोजन परोसने वाले छिपाते हैं पहचान'?

सारांश
Key Takeaways
- कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों की पहचान आवश्यक है।
- यह कोई नया कानून नहीं है, बल्कि एक पुराना कानून है।
- अशुद्ध भोजन परोसने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- सामाजिक सद्भाव को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
- सरकार का यह कदम पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए है।
मुरादाबाद, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के मार्ग पर दुकानों और ढाबा मालिकों की पहचान सार्वजनिक करने को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। इस बीच, यूपी के समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण मंत्री असीम अरुण शनिवार को मुरादाबाद पहुंचे। वहां उन्होंने कांवड़ यात्रा रूट पर नेम प्लेट के विवाद पर कहा कि यह कोई नया कानून नहीं है। इस कानून को पूरे प्रदेश में सख्ती से लागू किया जाएगा।
योगी सरकार के मंत्री असीम अरुण ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह एक बहुत पुराना कानून है और यह आवश्यक भी है। इसके तहत, ढाबा और रेस्टोरेंट के मालिकों को अपना नाम प्रदर्शित करना चाहिए और अपना जीएसटी आदि नंबर प्रकाशित करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह कोई नया कानून नहीं है, यह बहुत पुराना कानून है। इसी के तहत कार्रवाई की जा रही है। इसे बुरा मानने वाले वे लोग हैं, जो अवैध काम कर रहे हैं और अशुद्ध भोजन परोस रहे हैं। वे पकड़े न जाने के लिए नाम छिपाते हैं। असीम अरुण ने कहा कि अशुद्ध भोजन न परोसें। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो उसके खिलाफ सख्त कानून मौजूद है। ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
असीम अरुण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो नेम प्लेट लगाने पर रोक लगाई थी, वह एक अलग विषय है और यह रेस्टोरेंट और ढाबा मालिकों की पहचान उजागर करने का मामला है, जिसे पूरे सूबे में सख्ती से लागू किया जाएगा।
इससे पहले, समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद एसटी हसन ने नेम प्लेट चेक करने वालों की तुलना आतंकियों से की। उन्होंने कहा, "कांवड़ यात्रा रूट को लेकर सरकार का आदेश है कि नेम प्लेट लगाई जाए। मैं भी सरकार के इस फैसले से सहमत हूं। कभी इस्लाम ये नहीं सिखाता कि आप पहचान छिपाकर कारोबार करें। हालांकि, ऐसे फैसलों को लागू करने का काम प्रशासन का होता है, लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि क्या आम नागरिकों को अधिकार है कि वे किसी दुकानदार से धर्म पूछ सकते हैं? क्या पहलगाम में आतंकियों ने ऐसा नहीं किया था? ऐसा करने वाले और पहलगाम के आतंकियों में क्या अंतर रह गया? क्या ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो इस तरह की हरकतें कर सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ रहे हैं?"