क्या भगवान हनुमान के अवतार नीम करोली बाबा ने चमत्कार किए?

सारांश
Key Takeaways
- नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था।
- उन्होंने 1973 में समाधि ली थी।
- उन्हें हनुमान जी का अवतार माना जाता है।
- कैंची धाम में उनके भक्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
- नीम करोली बाबा के कई चमत्कारों की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।
नई दिल्ली, 10 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले की अकबरपुर में 1900 में जन्मे नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में ज्ञान प्राप्त किया और इसके बाद संन्यास लेने का निर्णय लिया। हनुमान जी के अवतार माने जाने वाले नीम करोली बाबा ने 11 सितंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के वृंदावन में समाधि ली। आइए, हम नीम करोली बाबा के चमत्कारों के बारे में जानते हैं।
देश-विदेश में प्रसिद्ध नीम करोली बाबा के भक्तों और श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। श्रद्धालु नैनीताल के निकट स्थित कैंची धाम में नियमित रूप से बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। उनके भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क, और हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स शामिल हैं।
नीम करोली बाबा हमेशा कंबल ओढ़े रहते थे, इसलिए श्रद्धालु आज भी उन्हें कंबल चढ़ाते हैं। रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) की किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में नीम करोली बाबा के चमत्कारों का उल्लेख है, जिसमें ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नामक घटना भी शामिल है।
बाबा नीम करोली का सादा जीवन के लिए जाना जाता था और उन्होंने हमेशा लोगों को अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित किया। 1958 में उन्होंने अपना घरबार छोड़कर उत्तर भारत का भ्रमण शुरू किया। उन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता था जैसे लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा। उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तप किया, जहां वे तलईया बाबा के नाम से मशहूर थे।
बाबा नीम करोली के दो बेटे और एक बेटी हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल में उनके बड़े बेटे अनेक सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं, जबकि छोटे बेटे धर्म नारायण शर्मा फॉरेस्ट रेंजर थे, जिनका निधन हो गया।
बाबा की कई चमत्कारी कथाएँ बेहद प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि एक बार नीम करोली बाबा बिना टिकट के ट्रेन में सफर कर रहे थे। टिकट न होने के कारण टिकट कलेक्टर ने उन्हें अगले स्टेशन पर उतार दिया। इसके बाद बाबा ने ध्यान लगाया और जमीन में अपना चिमटा गाड़ दिया। काफी प्रयासों के बाद भी ट्रेन का इंजन नहीं चला। रेलवे के अधिकारियों ने बाबा से माफी मांगी और जैसे ही उन्होंने ट्रेन में पुनः प्रवेश किया, गाड़ी चल पड़ी। उस स्टेशन का नाम नीम करोली बाबा के नाम पर रखा गया।
कैंची धाम में एक बार भंडारे का आयोजन हुआ, लेकिन उसमें घी की कमी आ गई थी। भक्त परेशान हो गए और सोचने लगे कि बाबा का प्रसाद कैसे बनेगा। नीम करोली महाराज ने पास की नदी से पानी मंगवाया और उनके निर्देश पर लाए गए पानी को भोजन में डालते ही वह घी में बदल गया, और प्रसाद तैयार हो गया।
नील करोली महाराज एक बार फतेहगढ़ में वृद्ध दंपत्ति के घर में ठहरे थे। उस दंपति का बेटा युद्ध के मैदान में फंसा था। उसी रात बाबा घर पर एक कंबल ओढ़कर सो गए। कहा जाता है कि बुजुर्ग दंपति के बेटे ने एहसास किया कि वही कंबल उसे गोलियों से बचा रहा था।