क्या फूलन देवी: चंबल की 'बैंडिट क्वीन' से लेकर संसद तक पहुँचीं?

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क्या फूलन देवी: चंबल की 'बैंडिट क्वीन' से लेकर संसद तक पहुँचीं?

सारांश

फूलन देवी की कहानी एक ऐसी महिला की है जिसने न केवल अपने जीवन में असंख्य संघर्षों का सामना किया, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा भी बनीं। चंबल की डाकू से लेकर संसद की सांसद बनने तक, उनका जीवन एक अद्वितीय यात्रा है, जो आज भी महिलाओं को प्रेरित करता है।

Key Takeaways

  • फूलन देवी ने नारी अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
  • उनका जीवन एक प्रेरणा है।
  • चंबल की डाकू से संसद की सांसद बनने की यात्रा।
  • जातिगत अपमान के खिलाफ उनकी आवाज महत्वपूर्ण है।
  • उनकी कहानी आज भी महिलाओं को प्रेरित करती है।

नई दिल्ली, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। 10 अगस्त 1963, यह तारीख केवल एक महिला के जन्मदिन की नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी की शुरुआत है, जिसने भारतीय समाज, राजनीति और न्याय की परिभाषाओं को चुनौती दी। यह कहानी है फूलन देवी की, जिन्होंने गरीबी, जातिगत उत्पीड़न और नारी होने के दर्द को सहा और फिर चंबल के बीहड़ों से निकलकर संसद के मंच तक पहुँचीं।

फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरहा के पुरवा गांव में मल्लाह जाति के एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ। 11 साल29 साल बड़े व्यक्ति से कर दिया गया। बाद में, वह अपने मामा के घर पहुंचीं, लेकिन वहां भी शोषण और अपमान उनका पीछा करते रहे। बचपन से ही अन्याय के खिलाफ उनकी बगावत ने गांव के दबंगों और पुलिस को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया।

पुलिस की यातना, बलात्कार और समाज की क्रूर टिप्पणियों के बीच फूलन ने पहली बार डाकुओं के गिरोह से संपर्क किया। विक्रम मल्लाह के साथ उन्होंने अपना कुख्यात 'फूलन मल्लाह गैंग' बनाया। चंबल के बीहड़ों में उनकी पहचान एक ऐसी महिला डाकू के रूप में बनी, जो अमीरों से लूटकर गरीबों में बांट देती, 'भारतीय रॉबिन हुड' की तरह। लेकिन 1981 का बहमई कांड ने फूलन देवी को 'डाकू' से 'दंतकथा' बना दिया। ठाकुर जाति के 22 लोगों की हत्या का आरोप उनके सिर पर आया।

फूलन का दावा था कि यह हत्याएं उन्होंने अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार और जातीय अपमान का बदला लेने के लिए की थीं। इस घटना के बाद वह उत्तर प्रदेश की ‘मोस्ट वांटेड’ बन गईं, लेकिन निचली जातियों में उन्हें नायिका के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ। थकान, लगातार भागते रहने की जिंदगी और मौत के साये ने उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया। लेकिन, उन्हें डर था कि उत्तर प्रदेश की पुलिस उन्हें समर्पण के बाद मार देगी, इसलिए सौदेबाजी मध्य प्रदेश सरकार से हुई।

13 फरवरी 1983 को मध्य प्रदेश के भिंड में हजारों की भीड़ के सामने उन्होंने हथियार मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के चरणों में रख दिए। बंदूक माथे से लगाकर नीचे रखने का वह क्षण भारतीय अपराध और राजनीति के इतिहास में बड़ा चर्चित रहा। उन्हें 11 साल कैद में रहना पड़ा। 1994 में रिहाई के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें राजनीति में उतारा। 1996 में वे मिर्जापुर से सांसद चुनी गईं। अब फूलन देवी महिलाओं की आवाज बन गईं। सड़क से लेकर संसद तक उन्होंने स्त्री अधिकारों और हिंसा के खिलाफ खुलकर बोला। लेकिन, जिन दुश्मनों से उन्होंने बीहड़ों में पंगा लिया था, वे दुश्मनी भूले नहीं थे। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनके सिर में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।

Point of View

जहाँ संघर्ष, अन्याय और नारी अधिकारों की आवश्यकता है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कैसे एक महिला अपने हक के लिए लड़ सकती है और समाज में बदलाव ला सकती है।
NationPress
10/08/2025

Frequently Asked Questions

फूलन देवी का जन्म कब हुआ था?
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को हुआ था।
फूलन देवी को क्यों जाना जाता है?
फूलन देवी को 'बैंडिट क्वीन' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने चंबल के बीहड़ों में डाकू बनकर अमीरों से लूटकर गरीबों में बांटा।
फूलन देवी की हत्या कब हुई?
फूलन देवी की हत्या 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में की गई थी।
फूलन देवी का राजनीतिक करियर कैसा था?
फूलन देवी ने 1996 में मिर्जापुर से सांसद के रूप में राजनीति में कदम रखा।
फूलन देवी का सबसे प्रसिद्ध कांड क्या था?
फूलन देवी का सबसे प्रसिद्ध कांड 'बहमई कांड' था, जिसमें ठाकुर जाति के 22 लोगों की हत्या का आरोप उन पर लगा।