क्या पीएम मोदी ने 'राधाकृष्ण संकीर्तन मंडली' को एक विशेष स्थान दिया?

सारांश
Key Takeaways
- भक्ति और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संगम।
- ओडिशा की 'राधाकृष्ण संकीर्तन मंडली' का महत्व।
- प्रमिला प्रधान जी का अभिनव योगदान।
- लोक परंपराएं आज भी समाज को दिशा दे सकती हैं।
- हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की जिम्मेदारी।
नई दिल्ली, 27 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ‘मन की बात’ के 124वें संस्करण में क्योंझर की भजन कीर्तन मंडली का उल्लेख किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मंडली विशेष क्यों है।
पीएम मोदी ने कहा, "भारत की विविधता की सबसे सुंदर झलक हमारे लोकगीतों और परंपराओं में दिखाई देती है, और हमारे भजन-कीर्तन भी इसी का हिस्सा हैं। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कीर्तन के माध्यम से लोगों को जंगल की आग के प्रति जागरूक किया जाता है? आपको शायद विश्वास न हो, लेकिन ओडिशा के क्योंझर जिले में एक अद्वितीय कार्य हो रहा है। यहां 'राधाकृष्ण संकीर्तन मंडली' नामक मंडली है।"
उन्होंने आगे कहा, "भक्ति के साथ-साथ, अब यह कीर्तन मंडली पर्यावरण की सुरक्षा का मंत्र भी जप रही है। इस शानदार पहल का श्रेय प्रमिला प्रधान जी को जाता है। प्रमिला जी ने पुराने भजनों में नए बोल और संदेश जोड़े, जिससे उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को बताया कि जंगल की आग से कितना नुकसान हो सकता है। यह उदाहरण हमें याद दिलाता है कि हमारी लोक परंपराएं अब भी समाज को दिशा देने की क्षमता रखती हैं।"
प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि, "हमारे त्योहार और परंपराएं भारतीय संस्कृति की एक मजबूत नींव हैं। हमारी संस्कृति की एक और विशेषता यह है कि हम अपने अतीत और वर्तमान को लिखकर सहेजते हैं। हमारी असली ताकत उन पांडुलिपियों में छिपी है, जो सदियों से सुरक्षित रखी गई हैं। इन पांडुलिपियों में विज्ञान, चिकित्सा पद्धतियां, संगीत, दर्शन और वो विचार समाहित हैं जो मानवता के भविष्य को उज्जवल बना सकते हैं।"
उन्होंने कहा, "ऐसे असाधारण ज्ञान की इस धरोहर को संजोकर रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। हमारे देश में हर युग में कुछ ऐसे लोग रहे हैं जिन्होंने इसे अपनी साधना बना लिया। तमिलनाडु के तंजावुर के मणि मारन जी जैसे प्रेरक व्यक्तित्व ने महसूस किया कि अगर आज की पीढ़ी तमिल पांडुलिपियां नहीं पढ़ेगी, तो यह अनमोल धरोहर लुप्त हो जाएगी। इसके लिए उन्होंने शाम की कक्षाएँ शुरू कीं, जहाँ छात्र, कामकाजी युवा, और शोधकर्ता सीखने के लिए आने लगे।"
पीएम मोदी ने बताया कि, "मणि मारन जी ने लोगों को 'तमिल सुवादियिल,' यानी ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों को पढ़ने और समझने की विधि सिखाई। आज, अनेक प्रयासों से, कई छात्र इस कला में पारंगत हो चुके हैं। कुछ छात्रों ने तो इन पांडुलिपियों पर आधारित पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर शोध भी शुरु कर दिया है।"