क्या प्रयागराज में यमुना किनारे पब्लिक प्लाजा पार्क बनेगा, जो भारतीय और जापानी संस्कृति का अनूठा उदाहरण होगा?
Key Takeaways
- यमुना किनारे पब्लिक प्लाजा पार्क का निर्माण.
- भारतीय और जापानी संस्कृति का अद्वितीय संगम.
- पार्क में 5 विशिष्ट जोन होंगे.
- जापानी गार्डन और मियावाकी वन का विकास.
- शांति और समरसता का प्रतीक.
प्रयागराज, १३ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। संगम नगरी प्रयागराज को धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक स्थल के रूप में जाना जाता है। योगी सरकार द्वारा महाकुंभ २०२५ के भव्य आयोजन ने इसके समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक स्वरूप को वैश्विक पहचान दिलाई है। अब कुंभ नगरी में जापानी और सनातन संस्कृति का अद्वितीय संगम देखने को मिलेगा।
हजारों किलोमीटर की दूरी और भाषा की भिन्नता के बावजूद, भारत की सनातन संस्कृति और जापान की पारंपरिक शिन्तो संस्कृति में अद्भुत समानताएँ हैं। दोनों सभ्यताएँ प्रकृति को देवत्व मानती हैं और आत्मसंयम तथा शांति को जीवन का आधार मानती हैं। कुंभ नगरी प्रयागराज अब इन दोनों संस्कृतियों के मेल का गवाह बनेगी। यहां जापानी स्थापत्य और सांस्कृतिक प्रतीकों से प्रेरित एक पब्लिक प्लाजा पार्क
सीएनडीएस के प्रोजेक्ट मैनेजर रोहित कुमार राणा ने बताया कि यह पार्क यमुना के किनारे, अरैल क्षेत्र में शिवालय पार्क के समीप, ३ हेक्टेयर में बनाया जाएगा। नगर निगम प्रयागराज को इसके निर्माण का प्रस्ताव भेजा गया है। इसमें भारतीय और जापानी संस्कृति के साझा स्थापत्य प्रतीकों का समावेश होगा।
प्रयागराज महाकुंभ के दौरान धार्मिक और आध्यात्मिक पार्कों के केंद्र के रूप में उभरा है। अरैल क्षेत्र में पहले शिवालय पार्क और अब साहित्य पार्क के निर्माण के क्रम में एक नई उपलब्धि जुड़ने जा रही है। यमुना नदी के किनारे पब्लिक प्लाजा पार्क का निर्माण हो रहा है। रोहित कुमार राणा ने कहा कि इस पार्क में ५ जोन बनाए जाएंगे। पार्क के हर कोने में जापान की शिन्तो संस्कृति और भारतीय सनातन संस्कृति के साझा मूल्यों की झलक मिलेगी। पार्क का प्रवेश द्वार टोरी गेट के रूप में बनाया जाएगा, जो शिंटो संस्कृति का प्रतीक है।
पार्क में एक जापानी गार्डन विकसित किया जाएगा, जिसमें मियावाकी वन भी शामिल होगा। यहां योग और भारतीय मंदिर वास्तुकला, नृत्य और संगीत के साथ-साथ जापान की चाय समारोह, इकेबाना और ज़ेन गार्डन का आध्यात्मिक भाव भी प्रकट होगा। इस पार्क के अंदर भी जेन पार्क का निर्माण किया जाएगा। दोनों देशों की कला केवल सजावट नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन और साधना का माध्यम है। समरसता, शांति और विश्व बंधुत्व भारत के “वसुधैव कुटुम्बकम्” और जापान के “वा” दर्शन में एक समान संदेश है, जो यहां स्थापित होने वाले प्रतीकों में दृष्टिगोचर होगा।