क्या बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्णिया सीट का कृषि, उद्योग और राजनीति पर गहरा प्रभाव है?

Key Takeaways
- पूर्णिया जिला कृषि और उद्योग का महत्वपूर्ण केंद्र है।
- यहाँ की मुख्य फसलें जूट, धान और मक्का हैं।
- पूर्णिया में 19 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं।
- राजेश रंजन (पप्पू यादव) की राजनीतिक पकड़ मजबूत है।
- पूर्णिया की अनुमानित जनसंख्या 5.50 लाख है।
पटना, 9 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव के तहत पूर्णिया सीट राजनीतिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र बन गई है। इस जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 3202.31 वर्ग किलोमीटर है और यह उत्तर में अररिया, दक्षिण में कटिहार और भागलपुर, पश्चिम में मधेपुरा व सहरसा और पूर्व में किशनगंज के साथ सीमाएँ साझा करता है। यह क्षेत्र कृषि, उद्योग और सामरिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की प्रमुख फसलें हैं जूट, धान, मक्का और गन्ना, जबकि पशुपालन और मुर्गी पालन भी स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
पूर्णिया जिले में कृषि मुख्य पेशा है। यहाँ धान, जूट, गेहूँ, मक्का, मूँग, मसूर, सरसों, अलसी, गन्ना और आलू की खेती की जाती है। जूट यहाँ की सबसे प्रमुख नकदी फसल है। इसके अलावा, नारियल, केला, आम, अमरूद, नींबू, अनानास और जामुन जैसे फल भी उगाए जाते हैं। पशुपालन यहाँ के लोगों के लिए बहुत प्रचलित है। लोग गाय, बकरी और सुअर पालते हैं। पूर्णिया बिहार में सबसे अधिक मुर्गी और अंडे का उत्पादन करता है।
जिले में बनमनखी में एक चीनी मिल और 716 छोटे उद्योग हैं, जो लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। पूर्णिया सड़क और रेल के माध्यम से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। कटिहार इसका सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है, और राष्ट्रीय राजमार्ग 31 इसे देश के अन्य हिस्सों से जोड़ता है।
पूर्णिया का समृद्ध हिंदू इतिहास और गौरवशाली अतीत है। मुगल काल में यह एक सैन्य क्षेत्र था, जहाँ राजस्व का अधिकांश हिस्सा सीमाओं की सुरक्षा पर खर्च होता था। 1757 में यहाँ के स्थानीय गवर्नर ने सिराज उद-दौलह के खिलाफ बगावत की थी। 1765 में यह ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। पूर्णिया अपने खास रामकृष्ण मिशन के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ अप्रैल में दुर्गा पूजा बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। इसके अलावा, शहर से लगभग 5 किमी दूर माता पुरान देवी का प्राचीन मंदिर भी प्रसिद्ध है। कुछ लोग मानते हैं कि पूर्णिया का नाम इसी मंदिर से लिया गया है, जबकि कुछ का कहना है कि यह नाम 'पूर्ण-अरण्य' यानी 'पूर्ण जंगल' से लिया गया है। ब्रिटिश काल में यूरोपियों को इसकी उपजाऊ जमीन और अनुकूल जलवायु ने आकर्षित किया, जिससे इसे 'मिनी दार्जिलिंग' कहा गया। अब गर्मियाँ यहाँ काफी तीखी होती हैं, लेकिन पूर्णिया बिहार का सबसे अधिक बारिश वाला क्षेत्र है, जहाँ आर्द्रता 70 फीसदी से अधिक रहती है।
शुरुआत में यूरोपीय लोग सौरा नदी के पास बसे, जिसे अब रामबाग कहते हैं। उन्होंने जमींदारी अधिकार खरीदे, व्यापार शुरू किया और नील समेत कई फसलों की खेती की। अंग्रेज किसानों ने पूर्णिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनके प्रभाव के निशान आज भी यहाँ दिखते हैं।
राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1951 में स्थापित पूर्णिया विधानसभा सीट पर अब तक 19 चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं। शुरुआती छह चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 1977 की इंदिरा गांधी विरोधी लहर में जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। 1980 से 1998 तक सीपीएम के अजीत सरकार का लगातार वर्चस्व रहा, जिनकी 1998 में हत्या के बाद यह सीट धीरे-धीरे दक्षिणपंथी दलों के पाले में चली गई। 2000 से भाजपा ने यहाँ लगातार सात बार जीत दर्ज की है। वर्तमान में भाजपा के विजय कुमार खेमका 2015 से विधायक हैं, जिन्होंने 2020 में कांग्रेस को हराया था।
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में समीकरण बदले। राजेश रंजन (पप्पू यादव) निर्दलीय लड़े और अपने प्रभाव के बल पर पूर्णिया से जीत दर्ज की। यादव की राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत है। वे छह बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और चार बार जीत भी चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर जीत पूर्णिया सीट से रही है।
वर्तमान में पूर्णिया की अनुमानित जनसंख्या 5.50 लाख है, जिसमें पुरुषों और महिलाओं का अनुपात लगभग बराबर है। कुल 3.29 लाख मतदाताओं में 1.71 लाख पुरुष, 1.58 लाख महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। हिंदू-बहुल इस क्षेत्र में जातीय समीकरण, उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दे चुनावी परिणाम तय करने में अहम होंगे।