क्या बिहार चुनाव में वामपंथी गढ़ बखरी पर भाजपा की नजर है?

सारांश
Key Takeaways
- बखरी की घनी आबादी और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था
- दलित वोटरों की संख्या का महत्व
- गंडक नदी की बाढ़ समस्या
- सीपीआई का चुनावी इतिहास
- भाजपा की चुनावी चुनौती
पटना, 22 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार चुनाव के चलते बेगूसराय जिले का बखरी (एससी) विधानसभा क्षेत्र फिर से चर्चा में है। गंडक नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अपनी घनी आबादी और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है। प्रति वर्ग किलोमीटर 1,928 लोगों की घनत्व वाला यह क्षेत्र आसपास के गांवों का प्रमुख बाजार केंद्र है।
बखरी की बलुई-दोमट मिट्टी धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती के लिए उपजाऊ है, जबकि दुग्ध उत्पादन आय का महत्वपूर्ण स्रोत है। लघु उद्योग भी स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देते हैं। यह निर्वाचन क्षेत्र बेगूसराय से 30 किमी, खगड़िया से 40 किमी और समस्तीपुर से 60 किमी दूर है, जबकि राजधानी पटना से 130 किमी की दूरी पर स्थित है।
चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, क्षेत्र की कुल आबादी 4,82,993 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,51,140 और महिलाओं की संख्या 2,31,853 है। मतदाता सूची में कुल 2,94,726 नाम दर्ज हैं, जिसमें पुरुष मतदाता 1,54,307 और महिला मतदाता 1,40,410 हैं, जबकि 9 थर्ड जेंडर मतदाता भी हैं।
यह क्षेत्र एससी आरक्षित होने के कारण दलित वोटरों (करीब 20-25 प्रतिशत) के लिए विशेष महत्व रखता है। ग्रामीण बहुल (करीब 85 प्रतिशत) इस क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और रोजगार प्रमुख मुद्दे हैं। गंडक नदी की बाढ़ हर साल फसलें बर्बाद करती है, जिससे प्रवासन बढ़ा है।
राजनीतिक दृष्टि से, बखरी 1951 में स्थापित विधानसभा क्षेत्र है, जो बेगूसराय लोकसभा के सात क्षेत्रों में शामिल है। 2008 के परिसीमन से इसे एससी आरक्षित किया गया। क्षेत्र में बखरी, डंडारी, गढ़पुरा प्रखंडों के साथ नवकोठी प्रखंड की पसराहा (पूर्व), नवकोठी, हसनपुरबागर, राजकपुर, विष्णुपुर, समसा और डफरपुर ग्राम पंचायतें आती हैं।
यहां अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं, जहां वामपंथी दलों का दबदबा रहा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने 11 बार जीत हासिल की, जिसमें 1967 से 1995 तक लगातार आठ बार का सिलसिला शामिल है। कांग्रेस को 1952, 1957 और 1962 में तीन जीतें मिलीं। 2000 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने सीपीआई की जीत का सिलसिला तोड़ा, लेकिन 2005 के दोनों चुनावों में सीपीआई ने वापसी की।
वहीं, 2010 में भाजपा ने पहली बार जीत दर्ज की, जबकि 2015 में राजद विजेता रहा। महागठबंधन ने 2020 में सीपीआई को ही सीट सौंप दी, जिसके उम्मीदवार मनोज कुमार ने भाजपा के प्रत्याशी को 777 वोटों से हराया।