क्या राजनाथ सिंह की उपस्थिति में 79,000 करोड़ रुपए के रक्षा प्रस्तावों को मंजूरी मिली?

सारांश
Key Takeaways
- 79,000 करोड़ रुपए के रक्षा प्रस्तावों को मंजूरी दी गई।
- भारतीय थलसेना के लिए नाग क्षेपणास्त्र प्रणाली स्वीकृत।
- भारतीय नौसेना के लिए 30 एमएम नेवल सरफेस गन का प्रस्ताव।
- वायुसेना के लिए कोलैबोरेटिव लॉन्ग रेंज सिस्टम मंजूर।
- भारत की सामरिक क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि।
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में नई दिल्ली में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में सशस्त्र बलों की युद्धक क्षमता और सामरिक तैयारी को सुदृढ़ करने के लिए लगभग 79,000 करोड़ रुपए के विभिन्न रक्षा अधिग्रहण प्रस्तावों को स्वीकृति दी गई।
भारतीय थलसेना के लिए नाग क्षेपणास्त्र प्रणाली (ट्रैक्ड) मार्क-2 को मंजूरी दी गई है। साथ ही, भारतीय नौसेना के लिए 30 एमएम नेवल सरफेस गन और वायुसेना के लिए कोलैबोरेटिव लॉन्ग रेंज टार्गेट सैचुरेशन/डिस्ट्रक्शन सिस्टम को भी मंजूर किया गया है।
बैठक में भारतीय थलसेना के लिए तीन प्रमुख प्रणालियों की खरीद को भी स्वीकृति दी गई, जिनमें शामिल हैं: नाग क्षेपणास्त्र प्रणाली (ट्रैक्ड) मार्क-2, ग्राउंड बेस्ड मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक खुफिया प्रणाली (जीबीएमईएस) और उच्च गतिशीलता वाले वाहन जिनमें सामग्री उठाने हेतु क्रेन लगी होगी।
नाग क्षेपणास्त्र प्रणाली (ट्रैक्ड) के समावेश से थलसेना की क्षमता शत्रु के टैंकों, बंकरों और फील्ड किलेबंदियों को निष्क्रिय करने में और अधिक प्रभावी होगी। वहीं, जीबीएमईएस प्रणाली सेना को शत्रु के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं रेडार संकेतों की 24 घंटे निगरानी करने की क्षमता प्रदान करेगी। उच्च गतिशीलता वाले वाहन से थलसेना की रसद सहायता में उल्लेखनीय सुधार होगा।
भारतीय नौसेना के लिए कई प्रमुख परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गई है, जिनमें लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक, 30 मिमी नौसैनिक सतह गन, उन्नत हल्का टॉरपीडो, इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड सर्च एंड ट्रैक सिस्टम और स्मार्ट गोला-बारूद शामिल हैं। इस प्रकार की खरीदारी से नौसेना को थलसेना और वायुसेना के साथ संयुक्त उभयचर अभियानों को अंजाम देने की क्षमता प्राप्त होगी। यह जहाज शांति स्थापना अभियानों, मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे।
उन्नत हल्का टॉरपीडो, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है, जो पारंपरिक, परमाणु एवं लघु पनडुब्बियों को निशाना बनाने में सक्षम है। 30 मिमी नौसैनिक सतह तोप की तैनाती से भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल की निम्न तीव्रता वाले समुद्री अभियानों में क्षमता बढ़ेगी।
भारतीय वायुसेना के लिए कोलैबोरेटिव लॉन्ग रेंज टार्गेट सैचुरेशन/डिस्ट्रक्शन सिस्टम को भी मंजूरी दी गई है, जो स्वायत्त उड़ान भरने, उतरने, दिशा निर्धारण, लक्ष्य पहचानने और निर्धारित मिशन क्षेत्र में पेलोड पहुंचाने की क्षमता रखती है। इससे वायुसेना की दीर्घ दूरी पर लक्ष्य साधने की क्षमता में वृद्धि होगी। इन प्रस्तावों की स्वीकृति से तीनों सेनाओं यानी थलसेना, नौसेना और वायुसेना की लड़ाकू क्षमता, सामरिक लचीलापन, रसद दक्षता और तकनीकी आत्मनिर्भरता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी।
रक्षा मंत्रालय का मानना है कि इन निर्णयों से भारत की सशस्त्र सेनाएं भविष्य की चुनौतियों के लिए और अधिक सशक्त और तैयार होंगी। रक्षा अधिग्रहण परिषद की यह मंजूरी न केवल आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देगी, बल्कि यह भारत की सशस्त्र सेनाओं को विश्व स्तर पर एक आधुनिक, सक्षम और आत्मनिर्भर रक्षा शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।